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[ ४८ ] इस दिन उपवास करना चाहिये। रत्नमयी पांच मेरु भगवान के सन्मुख चढ़ावे। कदाचित् ऐसी शक्ति न हो तो चांदी के अथवा घृत के मेरु चढ़ावे। स्नात्र, अष्ट प्रकारी या सत्रहभेदी पूजा करावे। दोनों समय प्रतिक्रमण करे। अष्टद्रव्य से पूजा करे देववन्दना करे । "श्री ऋषभदेव स्वामी पारंगताय नमः" इस पद का २००० गुणना करे। अगर जो भव्य तेरस के दिन पोसह करे और पूजादिक सव विधि पारने के दिन करे। इसी प्रकार तेरह वर्ष अथवा तेरह मास तपस्या करनी चाहिये। पीछे यथाशक्ति तप का उद्यापन करे, साधर्मीवत्सल करे। तीर्थों की यात्रा करे । गुरु भक्ति अवश्य करे।
फाल्गुन मास पर्वाधिकार फाल्गुन मास में मिति फाल्गुन सुदि १४ तीसरी चौमासी चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन की सर्व विधि आषाढ़ चौमासी चतुर्दशी के समान करनी चाहिये।
होली अधिकार भगवान् महावीर स्वामी ने वर्ष में ६ उत्तम पर्व कहे हैं :-तीन चौमासा, दो ओली तथा एक पर्युषण। जिन में से दो ओली एक पर्युपण तथा कार्तिक चौमासे का महोत्सव तो प्रायः सभी जगह विधि विधान पूर्वक होता है। फाल्गुन चौमासा ठीक विधि से नहीं होता। शास्त्रों में लिखा है कि:
होलिका फाल्गुन मासे, द्विविधा द्रव्य भावतः।
तत्राद्या धर्महीनानां, द्वितीया धर्मिणां मता ॥१|| अर्थात् होली दो प्रकार से मनाई जाती है १ द्रव्य से २ भाव से। द्रव्य से होली मनाने में अधर्म होता है और भाव से मनाने में सुख की प्राप्ति होती है। शुभध्यान रूपी अग्नि से अष्ट कर्म रूपी लकड़ी को जलाना चाहिये इसी से कर्मों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है!
पूर्व में होली के विशेष स्तवन लिखे हैं सो उन्हें बोलना चाहिये अथवा वसन्त के स्तवन बोलने चाहियें। रात्री जागरण करना चाहिये। मन्दिरजी में पूजा करानी चाहिये। यथाशक्ति सुन्दर नाटक करना, साधर्मी वत्सल करना और अगर यथेष्ट इच्छा हो तो जल, चन्दन, केशर, गुलाल इत्यादिक से क्रीड़ा करनी चाहिये इसी प्रकार प्रतिक्रमण व्रत जिन पूजादि धर्म कार्यों में समय व्यतीत करना चाहिये।
श्री जिन कुशल सूरिजी महाराज का संक्षिप्त जीवन चरित्र ___ मारवाड़ देश के 'समियाना' ग्राम में छाजेहड़ गोत्रीय मन्त्री देवराज के पुत्र मल्लिराज श्री जैसेला जल्हागर रहते थे। उसकी परम प्रेयसी पत्नी जयश्री थी। उन्हीं के गर्भ से मेरे चरित्रनायक का जन्म हुआ। आपका नाम 'कर्मण' रखा गया था। जब आप दश साल के थे, कलिकाल केवली श्री जिन चन्द्र सूरिजी इनके ग्राम में आये। वे बड़े ही प्रभावशाली धर्मोपदेशक थे, फलतः उनके उपदेश का प्रभाव आप पर बहुत अधिक पड़ा। अथवा यो कहिये कि जैसे अच्छे खेत में पड़ कर वीज उग आते हैं-व्यर्थ नहीं होते, ठीक उसी तरह उनके उपदेश मेरे चरितनायक के मानस पर-तथा मस्तिष्क पर सफल सिद्ध हुए। यद्यपि माता ने सासारिक मोह ममता के वश होकर इन्हें रोकने की चेष्टा की फिर भी इन्होंने माता को समझा बुझा कर श्री जिनचन्द्र सूरिजी महाराज से खूब समारोह के साथ दीक्षा ले ही ली। दीक्षा कालिक नाम 'कुशल कीर्ति' रखा गया। उन दिनों वयोवृद उपाध्याय 'विवेक समुद्र' जी बड़े ही उच्चकोटि के विद्वान् थे,अतएव उन्हीं से आपने विद्या पढ़ी।