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________________ [ २३ ] बन पड़े तो देश बिरति संयम पालन करके अपने कल्याण का साधन कर। प्रातःकाल उठकर सामायिक, प्रति क्रमण, देव दर्शन, द्वादशाङ्गी वाणी का श्रवण, देव वन्दन, गुरु वन्दन, दानशील भावना इत्यादि नित्य क्रियायें अच्छी तरह किया कर। सायङ्काल में देव सी प्रतिक्रमण एवं पर्व तिथि में पौषध प्रेम पूर्वक किया कर। इन सब कामों का नतीजा यह होगा कि कभी तेरे परम कल्याण साधक सज्ज्ञान का उदय होगा। पर तू यह सब क्यों करने लगा! तुझे तो बुरे कामों की ओर ही बह जाने की बान पड़ गई है। और बुरे कामों के परिणाम बुरे ही होते हैं। तब तेरी सुव्यवस्था कैसी? इसलिये हे चेतनानन्द, तू जरा अपने स्वरूप को पहचान एवं सच्चे आनन्द की तलाश कर। इस दुनियाबी प्रतिपन्न नाशमान आनन्द की ओर से अपना मुंह मोड़। पढ़ने गुणने में प्रवृत्त होकर चित्त निरोध करने की आवश्यकता है। इसी ठोस नौका के सहारे भवसागर पार करना होगा। तू ने श्रुत ज्ञान की भक्ति नहीं की। तब तुझे आत्म ज्ञान कैसे पैदा हो । जो जीव आत्म ज्ञान की भक्ति करते हैं और उस भक्ति की बदौलत केवल ज्ञान केवल दर्शन पाकर अष्ट कर्म बन्धनों से छुटकारा पाकर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। यदि अब भी तेरा विचार मोक्ष प्राप्ति का है तो सच्चे हृदय से धार्मिक क्रिया कर । सभी प्राणियों में समता का वर्ताव कर, जिससे तेरे सामायिक की सफलता में सहायता मिलेगी। क्योंकि कहा है "समता सव्व भूएसु तस्ससू थावरे सूअ ।। तस्स सामाइयं होई इमं केवली भासियं ।।" ____अर्थात् जो स्थावर जङ्गम सब में अपनी आत्मा के समान सुख दुःख का ध्यान रखता है, उसकी सामायिक सिद्ध होती है। यह केवलीयों ने कहा है। और ज्ञानी पुरुषों ने आत्म कल्याण के लिये केवल एक सामायिक का सम्यक् सम्पादन करना पर्याप्त कहा है। हे स्वप्रकाश, तू ने अपने जीवन में सैकड़ों सामायिक की, फिर भी कुछ लाभ की झलक अब तक नहीं मिली। वास्तविक सामायिक आनन्द, कामदेव, शंख, पुस्कली आदि उत्तम पुरुषों ने की थी। जिससे कि उनका उद्धार हो गया। उसका कारण क्या था ? वे लोग अपनी आत्मा को समता में रखकर शान्त वृत्ति के साथ व्यावहारिक कार्य में रहते हुए भी अन्तरात्मा काही ध्यान किया करते थे। तू ने समस्त जीवन में बहिरात्मा का ध्यान करके अपने बल और पौरुष की अज्ञानता के अतुल कीचड़ मे फंसा दिया; फिर क्यों तेरी सामायिक सफल हो सकेगी है। कहा है काम काज घर का चिंतबे, निन्दा विकथा कर खिज रहे ॥ आरत रौद्र ध्यान मन धरे, क्यों सामायिक निष्फल करे ॥१॥ वस्तुत: ऐसी सामायिक कभी नहीं करना चाहिये, क्योंकि इससे कुछ होने जाने का नहीं। असल सामायिक तो यह है अपना पराया सरखा गिनें, कञ्चन पत्थर समबड़ धरें। सांचो थोड़ो आतम भणे, ते सामायिक शुद्धे करें ॥१॥ शुद्ध भाव से सम्पादित सामायिक वस्तुतः संसार के उलझे वन्धन को काटने के लिये तीक्ष्ण तलवार है। पूनमिया सेठ को ऐसे ही सामायक की बदौलत आत्म कल्याण प्राप्त हुआ था। हे आत्मन् ! तू किसी की बुराई चाहनाछोड़ दे, क्योंकि वह तेरे लिये ही दुःखदायी सिद्ध होगी।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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