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[४] 'नय सात है। नै गम, संग्रह, व्यवहार, अजु सूत्र, शब्द, समभिरूढ़, और एवं भूत । इनके दो विभाग है, पहले तीन द्रव्यार्थिक नय कहलाते है-बाद के चार पर्यायार्थिक ?
दुनिया के सभी पदार्थ उनको जातीयता की दृष्टि से प्रायः सामान्य होते है और उनके व्यक्तित्व को दृष्टि से वे अपनी अपनी विशेषता रखते हैं। अर्थात् वस्तु मात्र सामान्य विशेषात्मक है। इन्सान के विचार भी कभी मात्र सामान्य ही की तरफ झुकते हैं- कभी मात्र विशेष की तरफ। जब पदार्थों का सामान्य दृष्टि से विचार किया जाता है तो वह द्रव्यार्थिक नय कहलाता है और जब विशेष पर विचार किया जाता है तो वह पर्यायार्थिक नय कहलाता है।
इन सामान्य और विशेष दृप्टियों में एक समानता नहीं रहती कुछ फरक रहता है। इसी का मार्ग दर्शन करने को फिर इनके भिन्न भिन्न विभाग किये है। जो हम ऊपर लिख चुके है । साथ में द्रव्य का विचार करते वक्त विशेष अर्थात् पर्याय और विशेष-पर्याय का विचार करते वक्त द्रव्य-सामान्य का विचार भी गौण रूप में रहता है। कपड़े की मीलमें हजारों तरह का कपडा निकलता है जब आप उसे कपड़े की दृष्टि से देखते हैं तो वह द्रव्यार्थिक नय होगा पर जब आप उनकी भिन्न जातियों-रंगआदि। पतला आदि का विचार करेगे तो वह वस्तु की विशेषता का विचार होने से पर्यायार्थिक नय कहलायेगा। दृश्य अदृश्य सूक्ष्म स्थूल कोई भी पदार्थ पर चाहे भूत भविष्य और वर्तमान सम्बन्धी क्यों न हो यह घटाया जा सकता है।
पहला नय नैगम है। शब्द और वाच्य पदार्थों के एक विशेष और अनेक सामान्य अंशों को प्रकाशित करने की अपेक्षा रखकर सामान्य विशेषात्मक अध्यवसाय को जिसका कि व्यवहार परस्पर विमुख अमान्य विशेष द्वारा हुआ करता हैं नैगम नय है। या दूसरा अर्थ होगा नैगम अर्थात् देशलोक, और लोक मे रूढ़ि अनुसार या संस्कार अनुसार जो उत्पन्न है वह होगा नैगम। देश काल और लोक सम्बन्धी भेदों की विविधता से नैगम नय के भी अनेक भेद प्रभेद हो सकते है।
कभी सुना जाता है इस दफा की मंदीमें हिन्दुस्तान खलास हो गया या कुष्टे के व्यापार में हिन्द मालामाल हो गया। इन शब्दों से मतलब हिन्दुस्तान के लोगों के आदमियों का ही रहता है।
महावीर जन्मोत्सव चैत्र सुदि १३ को मनाया जाता है उस वक्त हम यही कहते है-महावीर स्वामी का आज जन्म है हालां कि उन्हे हुए २५०० वर्प हो चूके पर उस दिन वे ही बातें याद करी जाती हैं लोग भी उसकी वास्तविकता समझे होते हैं।
__इत्यादि जो बातें लोक रूढ़ि में जैसे कही जाती है या मानी जाती हैं उनका वास्तविक शब्दार्थ पर ध्यान नहीं देकर प्रसिद्ध अर्थ ही ग्रहण होता है और यह सब नैगम नयान्तरगत है।
(२) जो सामान्य ज्ञेय को विषय करता है साथ में गोत्वादिक सामान्य और खड मुंडादि विशेष में प्रवृत्त होता है वह संग्रह नय है। सत्ता रूपी सामान्य तत्त्व संसार के सभी जड़ चेतन पदार्थों में मौजूद है और दूसरे पदार्थों पर विशेष लक्ष्य न देकर केवल सामान्य पर दृष्टि रखना संग्रह नय का विपय है। काराज़ के माल मे हजारों कागज़ों की ओर ध्यान न देकर उन्हें कागज की तौर पर ही सामान्य रूप में देखने से यह नय है। वैसे तो सामान्य को छोड़ विशेप और विशेष को छोड़ सामान्य नहीं रह सकता । इसलिये सामान्य रूप में दोनों का ग्रहण करता है।
संग्रह नय में भी तरतम भाश से अनेक उदाहरण हो सकते हैं। जितना छोटा सामान्य होगा संग्रह नय भी उतना ही छोटा और जितना बड़ा सामान्य होगा संग्रह नय भी उतना ही बडा होगा।