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जैन-रत्नसार जब कोई महोत्सव आवे, नर नारी खुस हो जावे । वे तो करते धर्म और ध्यान, कटेगा कर्म का पाप महान् ॥ तेरे० ३ ॥ मण्डल महावीर ये गावे, मौका बार बार नहिं आवे । कर लो धरम ध्यान और ज्ञान, कटेगा कर्म का पाप महान् ॥ तेरे० ४॥
भजन मन्दिर के बीच बैठ के गावें, प्रभू का ध्यान लगावें । सोने की झारी गङ्गाजल पानी, प्रभू को उससे नहलावें ॥ मन्दिर० १ ॥ घिस घिस केशर भर भर प्याले, प्रभू की अंगिया रचावें । चुन चुन कलियां फूल सजाकर, प्रभू के खूब चढ़ावें ॥ मन्दिर० २॥ दीया भर भर घी का लेकर, प्रभु की आरती उतारें। सब सज्जन हिल मिलकर गावें, दिल से शीश नवावें ॥ मन्दिर० ३॥
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॥ इति स्तोत्र विभाग ॥
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नोट-- यह भजन मिरजापुर निवासी ज्ञानचन्द सीपाणी का बनाया हुआ है नोट-यह भजन हीरालाल बदलिया वी० ए० की तरफ से मेट स्वरूप आया है।
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