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रास तथा सज्झाय-विभाग
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श्री शत्रुञ्जय रास
॥दोहा॥ श्री रिसहेसर पाय नमी, आंणी मन आनंद । रास भ" रलिया मणो, शत्रुञ्जय सुखकंद ॥१॥ संवत् चार सतोतरे, हुए धनेश्वर सूरि । तिण। शत्रुञ्जय महातम कियो, शिला दित्य हजूर ।।२।। वीर जिनंद समवसरचा, । शत्रुञ्जय ऊपर जेम । इन्द्रादिक आगल कह्यो, शत्रुञ्जय महातम एम ॥३॥ । शत्रुञ्जय तीरथ सारिखो, नहीं छे तीरथ कोय । स्वर्ग मृत्यु पाताल में, तीरथ
सगला जोय ॥४॥ नामे नव निधि संपजे, दीठा दुरित पुलाय । भेटता भव भय टले, सेवंता सुख थाय ॥५॥ जम्बू नामे दीपए, दक्षिण भरत मझार । सोरठ देश सुहामणो, तिहां छे तीरथ सार ॥६॥
॥ राग रामगिरी ॥ शत्रुञ्जय ने श्री पुण्डरीक, सिद्धक्षेत्र कहूं तहतीक । विमलाचलने कर परणाम, ए शत्रुञ्जयना इकवीस नाम ॥१॥ सुरगिरने महागिरि पुण्य राश, श्री पद पर्वत इन्द्र प्रकाश । महा तीरथ पूरवे सुख काम ए० ॥२॥ सासतो पर्वतने दृढ़ शक्ति, मुक्ति निलो तिण कीजे भक्ति । पुप्पदन्त महापद्म सुठाम ए० ॥३|| पृथ्वी पीठ सुभद्र कैलाश, पाताल मूल अकर्मक ताश । सर्व काम कीजे गुण ग्राम ॥४|श्री शत्रुञ्जयना इकबीस नाम, जपेजे बैठा अपने ठाम । शत्रुञ्जय यात्रानो फल लहे, महावीर भगवंत इम कहे ॥५॥
॥दोहा॥ शत्रुञ्जय पहले अरे, अस्सी जोयण परिमान । पिहलो मूल ऊंचीपणे छब्बीस जोयण जाण ॥१॥ सत्तर जायण जाणवो, वीजे अरे विसाल । वीस जोयण ऊंचो कह्यो, मुझ वंदना त्रिकाल ॥२॥ साठ जोयण तीजे अरे, पहिलो तीरथ राय । सोल जोयण ऊंची सही, ध्यान धरूं चित लाय ||३|| पचास जोयण पिहुलपण, चौथे अरे मझार । ऊंची दन जीवण अचल, नित प्रणमें नरनार ॥१॥ बार जोयण पंचम अरे, मूल नणे विम्नार । दो
यह राम २०४७ में श्री पृश्यजी श्री जिन धनधर मूरिजी में बनाया है।
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