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रास तथा सज्झाय-विभाग इग्यार तो । तो उपदेशे भुवन गुरू संयमस्र व्रत बार तो ॥ बिहुँ उपवासे पारणो ए, आपणपे विहरंत तो। गोयम संयम जग सयल, जय जयकार करत तो ॥ २१ ॥वस्तु ॥ इंद्रभूइ इंद्रभूइ चढियो बहु मान, हूंकारो करि कंपतो। समवसरण पहुतो तुरंततो जे संसा सामि सवे ॥ चरमनाह फेडे फुरंत तो, बोधि बीज संजाय मनें। गोयम भवहि विरत्त, दिक्खा लेई। सिक्खा सही गणहर पय संपत्त ॥२२ ॥भास॥ आज हुओ सविहाण आज पचेलिमा पुण्य भरो। दीठा गोयम सामि, जो निय नयणे अमिय झरो ॥ समवसरण मझार, जे जे संसय उपज ए । ते ते पर उपगार, कारण पूछे । मुनि पवरो ॥२३॥ जिहां जिहां दीजें दीख, तिहां तिहां केवल ऊपज ए।। | आप कनें अणहुंत, गोयम दीजे दान इम ॥ गुरु ऊपर गुरु भक्ति, सामी की गोयम ऊपनिय । अणचल केवल नाण, रागज राखे रंग भरे ॥२४॥
जो अष्टापद सैल, वंदे चढ चउवीस जिन । आतम लब्धि वसेण, चरम सरीरी सोज मुनि ॥ इम देसणा निसुणेह, गोयम गणहर संचरिय । तापस
पन्नरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए ॥२५॥ तप सोसिय निय अंग, । अम्हां सगति न उपज ए। किम चढ़से दृढ़ काय, गज जिम दीसे गाजतो
ए॥ गिरओ ए अभिमान, तापस जो मन चिंतव ए। तो मुनि चढियो वेग, अलंबवि दिनकर किरण ॥२६॥ कंचण मणि निष्फन्न, दंड कलस ध्वज वड सहिय । पेखवि परमानन्द, जिणहर भरतेसर महिय ॥ निय निय काय प्रमाण, चिहुं दिसि संठिय जिणह बिंब । पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥२७॥ वयर सामीनो जीव, तिर्यक् जभक । देव तिहां प्रतिबोध्या पुंडरीक । कंडरीक अध्ययन भणी, बलता गोयम
सामि ॥ सवि तापस प्रतिबोध करे, लेई आपण साथ । चाले जिम जूथाधिपति ॥२८॥ खीर खांड़ घृत आण, अमिय बूठ अंगूठ ठवे। गोयम एकण पात्र, करावे पारणो सवे ॥ पंच सयां शुभ भाव, उज्जल भरियो खीर मिसे। साचा गुरु संयोग कवल ते केवल रूप हुए ॥२९॥ पञ्च सयां जिननाह समवसरण प्राकारत्रय । पेखवि केवल नाण, उप्पन्नो उजाय करे ॥ जाणे
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