________________
vvvvvvvvv
vvvvvvvv
जैन-रत्नसार ॐ मान, माया, मद् पूरा, जाये नाठा जिम दिन चोरा । देव दुन्दुमि
आगासें वाजी, धरम नरेसर आव्यो गाजी ॥१०॥ कुसुम वृष्टि अरचे तिहां देवा, चउसठ इंद्रज मांगे सेवा । चामर छत्र सिरोवरि सोहे, स्वहि जिनवर जग सहु मोहे ॥११॥ उपसम रस भर वर वर सन्ता, जो जन वाणि वखाण करन्ता । जाणवि वर्धमान जिण पाया, सुर नर किन्नर आवइ राया ॥१२॥ कन्त समोहिय जल हल कन्ता, गयण विमाणहि रणरण कन्ता । पेखवि इन्द्र भूइ मन चिन्ते, सुर आवे अम यज्ञ हुवन्ते ॥१३॥ तीर तरण्डक जिम ते वहिता समवसरण पुहता गहगहिता । तो अभिमाने गोयम जंपे, इण अवसर को तणु कम्पे ॥१४॥ मूढा लोक
अजाण्यू बोले, सुर जाणंता इम काइ डोले । मो आगल कोई जाण * भणीजे, मेरु अवर किम उपमा दीजे ॥१५ वस्तु॥ वीर जिनवर वीर जिनवर
नाण सम्पन्न पावापुर सुरमहिय, पत्त नाह संसार तारण, तिहिं देवइ निम्महिय, समवसरण बहु सुक्ख कारण । जिणवर जग उज्जोय करे,
तेजहि कर दिनकार । सिंहासण सामी ठव्यो हुओ ते जय जयकार * ॥ १६ भास ॥ तो चढियो घणमाण गजे, इन्दभूइ भूयदेव तो । हुंकारो
कर संचरिय, कवणसु जिनवरदेव तो ॥ जोजन भूमि समवसरण, पेखवि प्रथमारंभ तो । दह दिस देखे विबुध वधू, आवंती सुररंभ तो ॥१७॥ मणिमय तोरण दंड ध्वज, कोशीशे नवघाट तो। वइर विवर्जित जंतुगण, प्राती हारज आठ तो ॥ सुरनर किन्नर असुरवर, इन्द्र इन्द्राणी राय तो। चित्त चमक्किय चिंतव ए, सेवंतां प्रभु पाय तो ॥१८॥ सहस किरण सामी वीर जिण, पेखिअ रूव विसाल तो। एह असंभव संभव ए, साचो ए इन्द्रजाल तो ॥ तो बोलावइ त्रिजग गुरु इन्द्रभूइ नामेण तो। श्री मुख संसय सामी सवे फेडे वेद पएण तो ॥१९॥ मान मेल मद ठेल करे, भगतिहिं नाम्यो सीस तो। पंच सयांसं व्रत लियो ए गोयम पहिलो सीस। तो ॥ बंधव संजम सुणवि करे, अगनिभूइ आवेय तो। नाम लेई आभास करे ते पण प्रतिबोधेय तो ॥२०॥ इण अनुक्रम गणहर रयण, थाप्या वीर
नत्र-त्रयननत्रजननत्रजननत्र यत्रतत्रत्रात्रत्रमनप्रजननननननननननन्त्र-ग्रनयननननननननननन
Balasiestainabilitarelalithailanilialebrillaskatrinacalisa.keletalalantatistolenathitadkaoretstainedatolastotocolakitcolaikirohibitoslahabalakinkalaJinalailabilkulina-fondiyokik
N S
प्रचलन