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स्तुति - विभाग
सिद्धायिका देवी अह निशि, आपो सुक्ख अमंद । श्री जिन लाभ सुरिन्द पसाये, कहे जिणचन्द मुणिन्द ||४|| पंचमी की स्तुति
पंचानंतक सुप्रपंच परमा नन्द प्रदा नक्षमं, पंचानुत्तर सीम दिन्य पदवी वश्याय मन्त्रोत्तमम् । येन प्रोज्वल पंचमी वर तपो व्याहारि तत्कारिणाम् । श्री पंचानन लांछनः सतनुतां श्री वर्द्धमानः श्रियम् ॥१॥ ये पंचाश्रवरोधसाधन पराः पंचप्रमादी हराः, पंचाणुव्रत पंच सुव्रत विधि प्रज्ञापना सादराः । कृत्वा पंच ऋषीक निर्जय मयो प्राप्ता गतिं पंचमी, तेऽमी सन्तु सुपंचमीव्रत भृतां तीर्थंकराः शंकराः ||२|| पंचाचार धुरीण पंचम गणाधीशेन संसूत्रितं, पंच ज्ञान विचार सार कलितं पंचेषु पंचत्वदम् । दीपाभं गुरु पंच मारतिमिरेष्वेकादशी रोहिणी, पंचम्यादिफल प्रकाशन पटुं ध्यायामि जैनागमम् ||३|| पंचानां परमेष्ठिनां स्थिरतया श्री पंचमेरु श्रियां, भक्तानां भविनां गृहेषु बहुशो या पंच दिव्यं व्यधात् । प्रहवो पंचजने मनोमतकृती स्वारत्न पञ्चालिका, पञ्चम्यादि तपोवतां भवतु सा सिद्धायिका नायिका ||४|| अष्टमी स्तुति
चउवीसे जिनवर प्रणमूं हूं' नित मेव, आठम दिन करिये चन्दा प्रभु नी सेव । मूरति मन मोहे जानें पूनमचन्द, दीठां दुःख जाये पामें परमानन्द ||१|| मिल चौंसठ इन्हें पूजे प्रभुजिन पाय, इन्द्राणी अप्सरा कर जोड़ी गुण गाय । नन्दीश्वर द्वीपे मिल सुर वर नी कोड़, अट्ठाई महोत्सव करतां होड़ा होड़ ||२|| सेन्रजा शिखरे जानी लाभ अपार, चौमासे रहिया गणधर मुनि परिवार । भवियण ने तारे देई धरम उपदेश, दूध सा करथी पिण वाणी अधिक विशेष ॥३॥ पोसो पडिकमणं करिये व्रत पचखाण, आठम तप करतां आठ करम नी हाण । आठ मंगल थायें दिन दिन कोडि कल्याण | जिनसुख सूरी कहे इम जीवित जनम प्रमाण ||४|| एकादशी स्तुति
अरनाथ जिनेसर दीक्षा नमि जिन ज्ञान, श्री मल्लि जनम त केवल
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