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ఇంగువగురుకులటుకుంటుందడువనంటివదదయమునందు
स्तवन-विभाग
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नयनत्रनयनपत्रधनत्र प्रचन्द्र बन्नच प्रवन्धनप्रबन्धनबन्नयन-जन गवस्त्रश्रवन्धनप्रबन्ध नयन.
प्रत्र ग्रन्प्रबन्धनप्रन्प्रत्रणमत्र-मनमत्रत्रत्रप्रन-मनधननयम
आलोयणा स्तवन
॥ सफल संसार नी॥ ए धन शासन वीर जिनवरतणो, जासु परसाद उपगार थाये घणो । सूत्र सिद्धान्त गुरु मुख थकी सांभली, लहिय समकित अने विरति लहिये वली ॥१॥ धर्म नो ध्यान धर तप जप खप करे, जिण थकी जीव संसार सागर तरे। दोष लागा जिके गुरु मुख आलोइये, जीव निर्मल हुए वस्त्र जिम धोइये ॥२॥ दोष लागे तिके चार ना, धुर थकी नाम ने अरथ ते धारणा । किम ही कारण बसे पाप जे कीजिये, प्रथम ते नाम संकल्प कहीजिये ॥३॥ कीजिये कंदर्प प्रमुखें करी, दोष तेवीय परमाद संज्ञा धरी । कूदतां गर्वता होय हिंसा जिहां, दर्प इण नाम करि दोष तीजो तिहां ॥४॥ विणसतां जीव जीवने गिनर करे जिको, चोथो आकुट्ठिया दोष उपजे तिको । अनुक्रमे चार ए, अधिक एक एक थी, दोष धर प्रायच्छित्त लेवे विवेक थी ॥५॥
॥ ढाल ॥ अन्य दिवस कोई मगध आयो पुरन्दर पास । पाटी पोथी कवली नवकर वाली जोय, ज्ञान ना उपगरण तणी आसातना कीधी होय । जघन्य थी पुरिमड्ड एकासणो आयम्बिल उपवास, अनुक्रम एह आलोयणा सुगुरु बताई तास ॥६॥ एमो खण्डित थाये अथवा किहांई गमाय, तो बलि नवा कराया दोष सहू मिट जाय । थापना अण पडिलेह्यां पुरिमढ़ नो तप धार, गिरतां एकासण ने गणतां चौथ विचार ॥७॥ दर्शन ना अतिचार तिहां पुरमड्ड जघन्य, एकासण आम्बिल अट्ठम चिहुं भेद मन्न । आशातन गुरुदेवनी साहमी सं अप्रीति, जघन्य एकासण नी आलोयण चढ़ती रीति ॥८॥ अनन्त काय आरम्भ विणास्यां चौथ प्रसिद्ध बीति चउरेन्द्रिय सायां एकासण थी वृद्ध । बहुवीति चौरेन्द्रिय हण्या बीति चउ उपवास संकल्पादि चिहुं विधि दुगुणा दुगुण प्रकास ॥९॥ उद्देही कुलिया बड़ा कीडी नगरा भंग, बहुत जलोयां मूक्या दस उपवास प्रसंग ।
LUKatarredakohlakakitahakorelirielatorcelaiacalendarlinkalantilalankeelirkirkirlialisahelialeunisialisticleotiotidoolcalarelaladalalalakkeideolokalcoholidlarkioteoloristakofilrlahhtralahktootahinilatantatathi.ki.
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