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स्तवन-विभाग
५४६ Mil एम लाल रे ॥ वी० १२ ॥ जिस दिन जो पद तप करें, तिसके गुण
चित्त धार लाल रे । काउसग्गने प्रदक्षिणा, मुख भणिये णवकार लाल रे ॥ वी० १३ ॥ जिस पदकी स्तवना सुने, कीजे जिन पद भक्ति लाल रे। पूजन शुभ मन साचवे, दिन दिन बढ़ती शक्ति लाल रे ॥ वी० १६॥ मृतक जनम ऋतु काल में, कोई धारयो उपवास लाल रे । सो लेखे नहीं लेखवो, निक्केवल तप जास लाल रे ॥ वी० १५ ॥ सावज त्याग पणो करे, शोक न धारे चित्त लाल रे । शील आभूषण आदरे, मुखसं बोले सत्य लाल रे ॥ वी. १६ ॥ जेठ आषाढ़ वैशाख में, मगसिर फागुन | मांहे लाल रे । ए षट् मासे मांहिने, व्रत ग्रहिये बड़ भाग लाल रे ॥ वी० १७ ॥ तप पूरण हुवां थकां, उजमणो निरधार लाल रे। कीजे शक्ति विचारी ने, उच्छव विविध प्रकार लाल रे ॥ वी. १८ ॥ बीस बीस गिणती तणा, पुस्तक पूठा आदि लाल रे । ज्ञान तणी पूजा करे, मूंकीजे हठबाद लाल रे ॥ वी० १९ ॥ फलवधी नगर नी श्राविका, कीधी विधि चित लाय लाल रे । जनम सफल करवा भणी, ओहिज मोक्ष उपाय लाल रे॥ वी० २०॥
कलश इम वीर जिनवर तणी आज्ञा, धार चित्त मझार ए । सहु देख आगम तणी रचना, रची तप विध सार ए॥ वसु नंद सिद्धि चन्द्र वरसे, चैत्र मास सुहंकरूं। मुनि केशरी शशि गच्छ, खरतर भणी स्तवना मनहरूं ॥२१॥
वीसस्थानक की स्तुति शिव सुख दाता जगत विख्याता, पूरण अभिनव कामी जी । ज्ञानादिक गुण चेतन रूपी, चिदानन्द धन धामी जी ॥ थानक वीसे आगम भणिया, वीतराग गुण भोक्ता जी । जे नर अंतर आतम ध्यावे, शिव रमणी वर युक्ता जी ||१|| अरिहंत सिद्ध प्रवचन सूरि, थिवर पाठक मुनि सारो जी । ज्ञान दरसन विनय चारित्र, ब्रह्मचरज क्रिया धारो जी ॥ तपसि
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