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जैन-रत्नसार . विंशस्थानक चैत्यवन्दन ___ अरिहन्तोंको सदा नमो, प्रवचनए सुखकार।आचारज स्थवरे पदे,पाठक प्रभु पद सार ॥१॥ ज्ञान दरसन विनय सदा, चारित्र जगहितकार । ब्रह्म क्रियातप गौतम, जिन संयम सुखकार ॥२॥ ज्ञान श्रुत तीर्थ नमो, आणी हर्ष अपार । एबीस पद सेवतां माणक जय जयकार ॥३॥
वीस स्थानक तप का स्तवन ___वीस थानक तप सेविये, धरकरि शुभ परिणाम लाल रे । तीजे भव। सेव्यो थको, बांधे तीर्थंकर नाम लाल रे ॥ वी० १॥ तप रचना अधिकी कही, ज्ञाता अंग मझार लाल रे। सुण जो भवि तुम भावसू, चित्तसे करिये उछाह लाल रे ॥ वी० २ ॥ सुविहित गुरु पासे ग्रहे, वीस थानक तप एह लाल रे । निरदुषण शुभ मुहूरतें, उचरी जे ससनेह लाल रे ॥ वी. ३ ॥ अरिहंत सिद्ध प्रवचन नमू, सूरि थिवर उवझाय लाल रे । साधु ज्ञान देसण अरु, विनय नमं उलसाय लाल रे ॥ वी० ४॥ चारित्र बंभ क्रिया पदे, तप गोयम जिण ईश लाल रे। चारित्र ज्ञान ने श्रुत भणी, नमूं तीर्थ पद वीश लाल रे ॥ वी० ५॥ वीस दिवस में ए कही, पद गुणनो कर मेव लाल रे । अथवा दिन वीसा लगे, वीसे पद गुण मेव लाल रे ॥ वी० ६ ॥ एक ओली षट मासमें, पूरी जो नवि होय लाल रे । फेरे- नवी करणी पड़े, पिछली निष्फल जोय लाल रे ॥ वी. ७ ॥ छठ अहम उपवास सं, अथवा देखी शक्ति लाल रे । पोसह कर आराधिये, देव वांदे निज भक्ति लाल रे ॥ वी० ८ ॥ संपूरण पद सेवतां, पोसह रो नहिं जोग लाल रे । तो ही सात पदे सही, पोसह करिये संजोग लाल रे॥ वी० ९ ॥ सूरि थिविर पाठक पदे, साधु चारित्र सुजान लाल रे । गौतम तीर्थ पदे सही, सात थानक मन मान लाल रे ॥ वी० १० ॥ पद पद दीठ करे सदा, दोय दोय जाप हजार लाल रे ।पडिकमणो दोय टंक ही, करिये पूजा सार लाल रे । वी० ११ ॥ शक्ति मूजब तप कीजिये, एक ओली करो बीस लाल रे । बोसां बीसी च्यार से, तप संख्या कहि ।
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