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स्तवन-विभाग भरुच्छ प्रमुख नगरादिक करिया विहार ॥ विहार करी प्रतिबोधे खंदक, पंच सयां परिवार । कार्तिक सेठ जितशत्रु तुरंगम, सुव्रत नाम कुमार ॥ तीस सहस वरस आउखो, पाले जग दया सार । श्री सम्मेत शिखर परमेसर, पहुंता मुगति मझार ॥१३॥ इम पञ्च कल्याणक थुणिया, त्रिभुवन तात । मुनि सुव्रत स्वामी, बीसमो जिनवर राय ॥ बीसमो जिनवर राय जगत गुरु, भय भंजण भगवंत । निराकार निरंजन, निरुपम अजरामर अरिहंत ॥ श्री जिनचन्द विनय शिरोमणि, सकल चन्द गणि सीस । वाचक समय सुन्दर इम पभणे, पूरो मनह जगीस ॥१४॥
पखवासा तप स्तुति | श्री मुनि सुव्रत प्रभुवर, जाकी करिये सेव । पखवासा तप आदरिये, सुध मन होय नित मेव ॥ प्रतिपद से पूर्णिमा, प्रभुजी की करिये सेव, श्री रत्नसूरि शिष्य, मोतीचन्द गुण हेव ॥१॥
दश पच्चक्खाण चैत्यवन्दन णमुक्कारसी और पोरिसी साढ पोरिसी पुरिमढ़, एकासणा णिव्वि और एगलठाणा देव ॥१॥ दत्ति आयंबिल उपवास ही पञ्चक्खाण ए जाण,
इनको नित प्रति करण से पामें स्वर्ग विमान ॥२॥ दश पच्चक्खाण करतां | थकां आत्मानन्द स्वरूप जिन रत्नसूरि शिष्य प्रवर सूरज शुद्ध प्ररूप ॥३॥ - दश पच्चक्खाण का स्तवन
सिद्धारथ नन्दन नमं महावीर भगवन्त । त्रिगड़े बैठा जिनवरूं परषद बार मिलन्त ॥१॥ गौतम गणधर समय पूछे श्री जिनराय । दस पञ्चक्खाण किसा कह्या कियां कवण फल थाय ॥२॥
सीमंधर करज्यो श्री जिनवर इम उपदिसे, सांभल गोमय स्वाम । दस पञ्चक्खाण किया थकां, लहिये अविचल ठाम ॥ श्री. ३ ॥ नवकारसी बीजी पोरिसी साढ़ पोरिसी पुरिमड्ड । एकासण नीवी कही, एक लठाण देवड्ड ॥ श्री०४॥ दत्ति आयम्बिल, उपवास ही, एहिज दस पच्चक्खाण । एहना फल सुन गोयमा
వనపుమడు మన మనమందరం
మనవడుతున్న
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