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स्तवन-विभाग
५३१
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एह आधार जग जाण जो अह्म सही ॥६॥ धण कणय माय पिय पुत्त परियण सहूं, हस्यो बोलो रम्यो रंग रातो बहूं । जयो जयो जग गुरु जीव जीवन धरा, तुझ समोवड नहीं अवर वाल्हे सरा ॥७॥ अमिय सम वाणि जाणे सदा सांभलू, बार परषदा मांहि आवी मिलू। चित्त जाणूं सदा सामि पाय जे लगू, किम करूं ठाम पुंडरगिरी वेगलूं ॥८॥ भोलिड़ा भगति तूं चित्त हारे किस्ये, पुण्य संयोग प्रभु दृष्टि गोचर हुस्ये। जेहने नामे मन वयण तन उल्लसे, दूर थी दूकडा जेम हियड़े वसे ॥९॥ भला भलो एणि संसार सहु ए अछे, सामि सीमंधरा ते सहू तुम पछे। ध्यान करतां सुपन मांहिं आवी मिले, देखिये नयण तो चित्त आरति टले ॥१०॥ सामि सोहामणा नाम मण गह गहे, तेहसू नेहजे बात तुम्हरी कहे । तुम्ह पद भेटवा अति घणो टलवलू, पंख जो होय तो सहिय आवी मिलूं ॥११॥ मेरु गिरि लेखणी आम कागल करूं, क्षीर सागर तणा दूध खड़िया भरूं । तुम्ह मिलवा तणा सामि संदेशड़ा, इन्द्र पण लखिय न सके अछे एवड़ा ॥१२॥ आपणे रंग भरि बात मुख जे टली, ऊपजे सामि न कहाय मुख तेतली । सुणो सीमंधरा राज राजेसरा, लाड़ ने कोड़ प्रभु पूर सवि माहरा ॥१३॥ पुव्व भवि मोह वश नेह हुवे जेहने, समरिये एणि संसार नित तेहने । मेह नो मोर जिम कमल भमरो रमे, तेम अरिहंत तूं चित्त मोरे गमे ॥१४॥ खरो अरिहंत ध्यान हियड़े वस्य, बापडू पाप हिव रहिय करशे किस्यू। ठाम जिम गरुडवर पंखि आवे वही, ततखिण सर्प
नी जाति न सके रही ॥१५॥ पाप में कन्ज सावज सहु परिहरी, सामि * सीमंधरा तुम्ह पय अणुसरी । शुद्ध चारित्र कहिये प्रभू पालसू, दुःख भंडार
संसार मय टालतूं ॥१६॥ तुम्ह हूं दास हूं तुम्ह सेवक सही, एह में बात । अरिहंत आगल कही । एवड़ी म्हारी भक्ति जाणी करी, आप जो बाप जी म सार केवल सही ॥१७॥ एम ऋडि वृद्धि समृद्धि कारण, दुरित वारण । सुख करो । उवझाय वर श्री भक्ति लाभे, थुण्यो श्री सीमंधरो ॥ जय जयो . जग गुरु जीव जीवन, करी सामि मया धणी । करजोड़ि वलि वलि वीनवू, प्रभु पूरो आशा मन तणी ॥१८॥
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