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________________ 0000rn roan.anna Rana - स्तवन-विभाग ५०६ * दिन पछे सुगुरु खरतरगच्छे । श्री अभयदेव सूरी सरूए, षट् बिगय परिहरी ऊग्र तप आदरी रक्त पित्ती थई मुनि वरूए, ते रक्त पित्ती गलत काया चित्तमें चिन्ता करे, अधरात सासण देवि आवी कोकडा नव कर धरे, ए सूत्र तूं सुलझाइ सुपरे तासगुरु जंपेइसो, जो थायसी मुझ निरोग काया तो सही उखेलसू ॥१३॥ ताम देवीय कहे नदिय सेढ़ी बहे, तेण तट वृक्ष । खाखर तले ए। तिहां तुम्हें जाइवो तबन करिबो नवों प्रगट थासी प्रभु , थंभणो ए, तेहने स्नात्र जल रोग सबि जाय टले, इम कहीय गई सासण , सुरीये, संघ सगलो मिली तिहां जाइ मन रली, ताम धरणेन्द्र ध्याने धरीये तहां करि जयतिहुअण बत्तीसी पाश, प्रगट्या ततक्षिणे तसु स्नात्र नीरे, सुख शरीरे धन्य धन्य सहुको भणे, तहां थान थाप्यो सुजस व्यापो थयो परचो 2. अति घणो, तेहनें नामें तेण ठामें ग्राम वास्यो थंभणो ॥१४॥ थईय महिमा । 1 घणी पाश थंभण तणी, सुगुरु काया नव पल्लवीए संघ आवे घणा करे वडामणा महयल कीरत विस्तरीए, सुपन जे देवता कोकडा नव हुता सूत्रते । ई सूत्र सिद्धान्त नामें वृत्ति नव अंग नी, भेद नव भंग नी, रची आचारजे ठामें तेण ठामें सहुय यामें आसकर जो आवए बहु भाव भक्ते एकचित्ते सेवतां । सुख पावए, एकदा गुरु धरणिन्द, ध्याने प्रगट थई पदमावती श्री अभयदेव सुरिन्द आगलि, इम कहे सांभल यति ॥१५॥ तवनजे तुम्ह करयो मंत्र 1 अतिशय भरयो, अन्ति तसुगाह जे वे कहीए, तेह गुणीये जहां इन्द्र आवे तहां कष्ट बिणतेह गुणवी नहीं ए, तेह भंडारवी काज संभारवी, अवर इण : तवन महिमा घणीए, समरतां सम्पदा रोग नावे कदा सदा आवश्यक धुरि भणीए, पडिक्कमणा नित भणे धुरि एह विधि खरतर तणीए, इम कही सासण देवि सामण गई, निज थांनिक भणीए, केतले दिवसे देश गुजर सयल म्लेच्छायन थयो, भले ठाम जाणी बिम्ब आणी नयर श्री खम्भा यत ठव्यो ॥१६॥ खम्भ नयर सिरि पास जिणेसरू, दिन दिन दीपत अति अलबेसरू । जात्र करेवा मुझहुन्ती रली, प्रभुमें भेट्यो आस सहू फली मुझ आस सफली, थईय सामी जाम भेट्या जगपती सौभाग्य सुन्दर करोउन्नति Pobainel Libre In Barlo Ptolart intromy a Year to sais tiktokkhlakul olen ob at bu imt . Polpeł in ild tirktiliselt.but toimistellt hahabol sala beint Intl do cha ta! L ni
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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