________________
XXSAbouTHEOREMEDIESXXXXGAtithikthak
9.
५०३
anan..
.
...
....
...
.
.00 4000
MILYMNAMAMhalaMMENTahalkatakMMINGAAMANAMAHAKAAMANAMAMALNAAMK
स्तवन-विभाग
श्री मल्लि जिन स्तवन सेवक किम अवगणिये हो मल्लि जिन, एह अब शोभा सारी । अवर जेहने आदर अति दीए, तेहने मूल निवारी हो । मल्लि० १॥ ज्ञान सुरुपम अनादि तुम्हारू, ते लीबूं तुम ताणी । जुओ अज्ञान दशारी सावी, जातां काणन आणी हो ॥ म० २॥ निद्रा सुपन जागर उजागरतां, तुरिय अवस्था आवी । निद्रा सुपन दशारीसाणी, जाणी न नाथ मनावी
हो ॥ म० ३ ॥ समकित साथे सगाई कीधी, सपरिवार गाढ़ी। मिथ्या । मति अपराधण जाणी, घर थी वाहिर काढ़ी हो ॥ म० ४ ॥ हास्य अरति . रति शोक दुगंच्छा, भय पामर कर साली। नोकषाय श्रेणी गज चढ़ता, श्वान तणी गति जाली हो ॥ म० ५॥ राग द्वेष अविरतिनी परिणति, ए चरण मोहना योधा । वीतराग परिणति परणमता, उठी नाठा बोधा हो ॥ म० ६॥ वेदोदय कामा परिणामा, काम्यक रसहु त्यागी। नि:कामी करुणा रस सागर, अनंत चतुष्क पद पागी हो ॥ म० ७ ॥ दान विघन वारी सहु जनने, अभय दान पद दाता । लाभ विघन जग विधन निवारक, परम लाभ रस माता हो ॥ म० ८॥ वीर्य विधन पंडित वीर्ये हणी, पूरण पदवी योगी। भोगोपभोग दोय विधन निवारी, पूरण भोग सुभोगी हो ॥ म० ९॥ ए अढ़ार दृषण वरजित तन, मुनि जन वंदे गाया । अविरति रूपक दोष निरूपण, निरदृषण मन भाया हो ॥ म० १० ।। इण विध परखी मन विसरामी, जिनवर गुण जे गावे । दीनबंधुनी महिर नजर थी, आनन्द घन पद पावे हो ॥ म० ११ ॥
मुनि सुव्रत जिन स्तवन हाथ जोड़के अरज करूं, मोरी अरजी मानो जी,॥ हाथ० ॥ काल अनन्त मोहे भटकत बीत्यो, अबतो तारो जी ॥ हाथ० १॥ अधम उधारण हो प्रभु तुमहीं, मेरी ओर निहारो जी ॥ हाथ० २॥ तुम बिन
ALAMMAMAKHELK
HARASNA athan