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स्तवन-विभाग
५०१ ले जोर जोड़ ॥ जि. धर० ४ ॥ एक पखी केम प्रीति वरे पड़े, उभय । मिल्या हुए संधि जि० हूंरागी हूंमाहे फंदियो, तुं निरागी निखंधि । जि. घर० ५ ॥ परम निधान प्रगट मुख आगले, जगत उलंघी हो जाय जि. । ज्योति विना जुओ जगदीसनी, अंधो अंध पुलाय ॥ जि० ध० ६ ॥ निरमल गुण मणि रोहण भूधरा, मुनि जद मान सहंस जि० । धन्य ते नगरी धन बेला घड़ी, माता पिता कुल वंश ॥ जि. ध० ७ ॥ मन मधुकर वर । करजोड़ी कह, पद कज निकट निवास जि० । घन नामि आनंद घन सांभली, जिनेसर ए सेवक अरदास ॥ धरम० ८॥
शांति जिन स्तवन ____ शांति जिनंद गुण गावो, मना शिव रमणी सुख पाओ तुम शांति ॥ मन बच काय कपट तज आतम, शुद्ध भावना भावो मना ॥ शांति० ॥१॥ दयाधर्म अरु शीत तपस्या, करि सब कर्म खपावा मना ॥शांति०२॥ माया मोह लाभ पर निन्दा, विषय कषाय नसावो मना ॥शांति० ३जगवन्दन अचिरा नन्दन को, निश दिन ध्याय रिझावी मना ॥ शांति. ४ ॥ जिन पद कज मधुपम जाते, उत्तम ध्यान लगावो मना ॥ शांति० ५ ॥ जिन कल्याण* मरि प्रभु चरणे, वेर बेर लय लावा मना ॥ शांति० ६ ॥
श्री कुंथु जिन स्तवन
__(अम्बर हो मुरारी हमारो) कुंथु जिन मनड़ो किम हीन बाज हो कुं० ॥ जिम जिम जतन फरीन गावं. निम निम अलगं भाजे हो ॥ कं. १॥ रजनी बालर वसनी
जड़ गयण पायाले जाय । सांप खायने मुग्वडी बायं. एह औग्वाणी न्याय हो ॥ कुं० २॥ मुगति तणा अभिलापी नपिया. ज्ञाननं ध्यान अयान । वर्गई काइ एवं चिन्ने. नाग्यं अन्टब पान हो ॥ कं० : ॥ आगम आगम घग्ने हाथ. नात्र किण विधि आकं । किहां कणं जो हठ ...न विजय पानी
हाल श्री पूरी श्रीन :
मनाया गया।
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