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जैन-रत्नसार
मनपटाला मामला
बीच दान फल, तप नवमी तपिये ॥५॥ ए सिद्ध चक्र आराधतां, करे वंछित कोड । सुमति विजय कविराय नो, राम कहे करजोड़ !॥६॥
॥ नवपद चैत्यवन्दन ॥ जय जय श्री अरिहंत देव, द्वादश गुणधारी । जय जय सिद्ध महाराज, शत्रुगण हणिया भारी॥१॥ जय जय सूरि उवझाय, पचवीस गुणधारी । जय जय साधुशान्त दान्त भविजन हितकारी ॥२॥ ज्ञान चरण नमो, तपसेवो निरधारी । माणकचन्द प्रणमें सदा, नित वंदो नरनारी ॥३॥
॥ परमातम चैत्यवन्दन ॥ परमेश्वर परमात्मा, पावन परमिट्ट । जय जय गुरु देवाधि देव, नयणे मैं दी? ॥१ अचल सकल अधिकार सार, करुणा रस सिन्धु । जगत जन आधार एक, निःकारण बन्धु ॥२॥ गुण अनन्त प्रभुता हरा ए, कुछ भी कहान जाय । राम प्रभु जिन ध्यान थी, चिदानन्द सुख थाय ॥३॥
॥ श्री पर्युषण चैत्यवन्दन ॥ पर्व पर्युषण आविया, पूजो जिन चौवीस । शासन जेहने दीपतो, जयवंतो जगदीश ॥१॥ अष्टम दीप को जाणिये, नन्दीश्वर शुभनाम । देवदेवी नाटक करे, करे प्रभु गुण ग्राम ॥२॥ अट्ठाई महोत्सव सुरकरे, पूजे नित प्रभु मेव । श्री जिन चारित्र सूरितणों माणक करे नित सेव ॥३॥
॥ पञ्चतीर्थ चैत्यवन्दन ॥ आदिदेव अरिहंत नमू, समरूं तोरूं नाम । ज्या ज्या प्रतिमा जिनतणी, त्यां त्यां करूं प्रणाम ॥१॥ शत्रुजय श्री आदिदेव, नेम नमू गिरनार । तारंगे श्री अजितनाथ, आवू ऋषभ जुहार ॥२॥ अष्टापद गिरि ऊपरे, जिन चौबीसी जोय । मणिमय मूरति मानसं, भरत भरावी सोय ॥३॥ सम्मेत शिखर तीरथ बडूं, ज्यां वीसे जिनपाय । वैभारक गिरि ऊपरे, श्री वीर जिनेश्वर राय ॥४॥ मांडव गढ़ नो राजियो, नामे देव सुपाश । ऋषभ | कहे जिन समरतां, पहुंचे मन नी आश ॥५॥
MARATHIlliAEEMALEshalal