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जैन-रत्नसार मंगल दीपक
. दीवो रे दीवो मंगलिक दीवो, आरति उतारण बहु चिरंजवो । दी० १॥ सोहामण घर पर्व दीवाली, अंबर खेले अमरा बाली ॥ दी० २ ॥ वेपल भणे इण कुल अजुवाली, भावे भक्ते विधन नीटाली ॥ दी. ३ ॥ देल भणे इणे कलिकालें, आरति उतारी राजा कुमर पालें ॥ दी० ४ ॥ हम घर मंगलिक तुम घर मंगलिक, मंगलिक चतुर्विध संघ ने हो जो ॥५॥
मंगल दीपक विविध रत्न-मणि जड़ित रचो, थाल विशाल अनुपम लावो । आरती उतारो, प्रभुजी नी आगे, भावना भावी शिव सुख भावे ॥ आ. १॥ भात चौद ने एक विस मेवा, भण त्रण वार प्रदक्षिणा देवा ॥ आ० २॥ जिम तिम जलधारा देई जपे, जिम तिम दोहग थर थर कंपे आ०३॥ बहु भव संचित पाप पणा से, सब पूजामें भाव उल्लासे ॥ आ०४ ॥ चौद भुवन मां जिन जी कोई, नहीं आरति इम समजोई ॥ आ० ५॥
मंगल दीपक चारो मंगल चार, आज म्हारे चारो मंगल चार । देखा दरस सरस जिनजीका, शोभा सुंदर सार ॥ आज० १॥ छिनु छिनु छिनु मन मोहन
चरचो, घसी केसर धनसार ॥ आज० २ ॥ विविध जाति के पुप्प मंगाओ, | मोगर लाल गुलाब ॥ आज० ३ ॥ धूप उखेवी ने करो आरती, मुख बोले ।
जय २ कार आज० ४॥ हर्ष धरी आदीसर पूजो, चौमुख प्रतिमा चार ॥ आज० ५ ॥ हेत धरी मन भावना भावो, जिम पामो भव पार ॥ आज० ६॥ सकल संघ सेवक जिन जीका, आनंद घन उपकार ॥ आज० ७ ॥
गौतम गणधर आरती जय जय गणधारा, गौतम गोत्र इन्द्र भूति नामें भवियण हित
* ये दोनों गणधरों की आरती रंगविजय खरतर गच्छीय यति पन्नालालजी महाराजकी। वनाई हुई है।
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