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आरती- विभाग
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ए च्यारे जिन शाश्वत सोहे, समरण मंगल थाय रे || जी० २ || अष्ट प्रकारी पूज मनोहर, मन शुद्ध कर मन भाय रे । जन्म जरा दुःख दूर करण ते, कीजे एह उपाय रे || जी० ३ || पंच प्रदीप से आरती कीजे, डावे आवर्त्त कहाय रे । जो नर आरती पढ़े पढ़ावे, तो थाये सुर राय रे ॥ जी० ४ ॥ मंगल कारी विधन निवारी, सुखकारी लय लाय रे | पंचम गति पामे एह नामे जे गावे चितलाय रे ॥ जी० ५ || एह आरती भविजन मोहे, नामे नवनिध थाय रे । सुखकारी ए सकल मनोहर, कर्पूरभद्र गुण गाय रे || जी० ६॥
पंच तीर्थ आरती
जय जय आरती आदि जिनंद की, जय जय आरती आदि जिनंद की ॥ पहली आरती प्रथम जिनंदा, शत्रुंजय मंडण ऋषभ जिनंदा || दूसरी आरती मरुदेवी नंदा, युगला धरम निवार करंदा ॥ जय० १ ॥ तीसरी आरती त्रिभुवन मोह, रत्न सिंहासन प्रभुजी में सोहे । चौथी आरती नित्य नई पूजा, देव ऋषभदेव अवर न दूजा ॥ जय० २ पंचमी आरती प्रभु जी ने भावे, प्रभुजी ना गुण सेवक इण गावे । कर जोड़ी सेवक इम बोले, नहीं कोई माहरा प्रभुजी ने तोले ॥ जय० ३ ॥ जय जय आरती शांति तुमारी, तेरा चरण कमल की में जाउं बलिहारी । आरती कीजे प्रभु आदि जिनंद की, मृगलंछन की में जाउं बलिहारी । विश्वसेन अचिराजी के नंदा, शांति जिनंद सुख पूनम चंदा ॥ जय० ४ ॥ आरती कीजे प्रभु नेम जिनंद की, शंख लंछन की में जाउं बलिहारी । समुद्र विजय शिवा देवी को नंदा, नेमि जिनंद मुख पूनम चन्दा || जय० ५ ॥ आरती कीजे प्रभु पाश जिनंद की, फणिंद लंछन की में जाउं वलिहारी । अश्वसेन वामा जी के नंदा, पाश जिनंद सुख पूनम चन्दा ॥ जय० ६ ॥ आरती कीजे महावीर जिनंद की, सिंह लंछन की में जाउं बलिहारी । सिडारथ त्रिशला के नंदा, वीर जिनंद सुख पूनम चन्दा ॥ जय० ७ ॥ आरती कीजे चावीश जिनंद की, चाबीश जिनंद की में जाउं बलिहारी । चरण कमल नित सेबित इन्दा, चौवीश जिनंद सुख पूनम चन्दा ॥ जय० ८ ॥