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......... जैन-रत्नसार राज वालाजी । सुविधि शीतल जिन साहिबा, सु० सारो वांछित काज वालाजी ॥ २६ ॥ श्री श्रेयांस जिनेसरू, सु. वासु पूज्य जिनराज वालाजी। विमल अनन्त जिन धरम जी, सु० धरम तणा दातार वालाजी ॥ २७ ॥ शान्ति कुंथु अरनाथ जी, सु० चिन्ता चूरण हार वालाजी । मल्ली प्रभु उन्नीसवां, सु० वीसमा सुव्रत देव वालाजी ॥२८॥ नमी नेमि बावीसम, सु० पारसनाथ सुसेव बालाजी। चौवीसमा श्री वीरजी, सु. देवे सुख नित मेव वालाजी ॥ २९ ।। धरम विशाल दयालनो सु० सुमति कहे मन रंग वालाजी। ए जिन उत्तम जानिने | स. पूजो भविक उमंग वालाजी ॥ ३० ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दश रज्वात्मके शाश्वत अशाश्वत जिनेन्द्राय अप्ट द्रव्यं मुद्रां यजामहे स्वाहा ।
तृतीय कुसुम पूजा
॥दोहा॥ सत पत्री वर मोगरा, चंपक जाइ गुलाब । पुष्प लेई जिनराज नी पूज करो शुभ भाव ॥१॥ ऊर्ध्व लोक में जे अछे, शाश्वत श्री जिनराज । परम शुचि हुय पूजिये, सफल होय सब काज ॥२॥
॥ चाल नैना सफल थई । दिल में हरषधरी, भवि पूजो जिनवर सार दिल में हरष धरी । ऊर्ध्व लोक में जे अछरे, शाश्वत श्री जिनराज । द्रव्य भाव पूजो सहरेपावो सुक्ख समाज ॥ दिल में हरषधरी ३ ॥ पहिलो सुधरम नाम हैरे दुजो छे । ईशान । तीजो सनत्कुमार छे रे, चौथो माहेन्द्र जान ॥ दिल में० ४ ॥ ब्रह्म लोक पंचम कह्यो रे, छटोलांतक देव । सातमों शुक्र सहू कहे रे, धारो दिल नित मेव ॥ दि. ५ ॥ सहस्त्रार नामे आठ मोरे, देव लोक नो नाम । तियच जेहनी जे कहीरे, इतनी गति अभिराम ॥ दि. ६ ॥ नवमो आनत जानिये रे, प्राणत दसमो सार । आरणनाम इग्यारमों रे बारमो अच्युत धार ॥ दि० ७ ॥ ए सहु देव जिनन्दनी रे, आवे करिवा सेव ।। कल्याणक उच्छव करे रे, पावे सुख नित मेव ॥ दि. ८ ॥ कल्पोत्पन्न कही।