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पूजा - विभाग
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जहां सुर रानी || अब० || चारे पासे चार वरणना, विजयादिक सुर रहे
जानी ॥ अब० १४ ॥ दोय लाख लवणे करिवींट्यो, खारो जेहनो बहु पानी || अब० ॥ अनाढिय नामे देव तेहनो, मालिक छे सुनो भवि प्राणी || अब० १५ || दुजो धातकी खंड कहीजे, चार लाख है पर - मानी || अब० ॥ अठलख योजन समुद्र वींटिया, कालो दधि नाम सुनो ज्ञानी ॥ अब० १६ ॥ सोलह लख योजन परमाणे, द्वीप पुष्कर वर गुणवानी || अब० || बीच मानुषोत्तर परवत कहि ये, इतनी सीम मनुष जानी ॥ अब० १७ ॥ तिणथी आगे द्वीप आठमो, तेरमोरुचक कहे ज्ञानी ॥ अब० ॥ बत्तीस रतिकर सोले दधि मुख, चार अंजन गिरि कहे जानी ॥ अब० १८ ॥ तसु बीचमें है चार बावड़ी, कमल सुशोभित हैं पानी || अब• || बावन मन्दिर जिनवर दाख्या, ते वंदे मुनि शुभध्यानी || अब० १९ ॥ साधू जंघा विद्याचारण, वंदे जिनवर सुख खानी || अब० ॥ इण पर एक द्वीप में उदधि, असंख्यात तिरछे जानी
॥ अब० २० ॥
॥ पनिहारी री ॥
जम्बुद्वीपना भरत में, सुखकारीरेलो । खंड कह्या छह सार, वाला जी ॥ मध्य खंड उत्तम कह्यो, सु० आरज देश प्रधान ॥ वाला जी ॥ साडा पंचवीसक जिण कह्या, सु० जहां जिन धरम सुजांन बाला जी ॥२१॥ जिनवर मुनि मुनिवर केवली, सु० विचरे जहां मुनिराज बालाजी । तप जप संजम आदरे, सु० सफल करे निज काज वालाजी ॥ २२ ॥ त्रेसठ शलाका जहां कह्या, सु० तेना सुनो अधिकार वालाजी । बारे चक्री जानिये, सु० सब में ए सरदार बालाजी ॥ २३ ॥ वासुदेव नव महावली, सु० सुर धीरज अवतार वालाजी । प्रति वासुदेव कह्या बलि, सु० नव संख्याये धार बालाजी ॥ २४ ॥ तीर्थंकर चौबीस ए, सु० सुनज्यो धर शुभ भाव वालाजी । ऋषभ अजित सम्भव नमो, सु० अभिनन्दन महाराज बालाजी ॥ २५ ॥ सुमति पदम सुपारसजी, सु० चन्द्र प्रभ जिन
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