________________
attarintiki
dattatha
Attarintists
३६४
.............www.rimar
-
wrar.nawwar
PREMAMALDERaisindianRAMKARANAMATLABITAL-
Tee
नप्रवलनग्रनल्ल ल्ललावल्याणपत्रानननननननककककक
जैन-रत्नसार स्वकर्म निचयो, वीराय नित्यं नमः ॥ वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं वीरस्य घोरं तपः । वीरे श्री धृति कीति कान्ति निचयः श्री वीरभद्रंदिश ॥११॥ ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमन्महावीर जिनेन्द्राय दीपं यजामहे स्वाहा ।
षष्ट अक्षत पूजा
॥दोहा॥ पंचवर्ण अक्षत सरस, भरि कंचनके थाल ।
अक्षत प्रभु गुण गायके, पूजों दीन दयाल ॥१॥ ( कृष्ण घर नंद के आये, सितारा हो तो ऐसा हो) वीर सिद्धार्थके नंदन, जिनेश्वर हो तो ऐसे हों ॥ शुदी वैशाख की दशमी, मिला है ज्ञान जिनवर को । कटे हैं फंद कर्मों के, महावीर हों तो ऐसे हों ॥ वीर० २॥ मिला एक आय अभिमानी, इन्द्र भूती ब्राह्मण था। बनाया शिष्य अरु गणधर, गणेश्वर हों तो ऐसे हो ॥ वीर० ३ ॥ दधि बाहन नरेश्वर की, धिया चंदन सुबाला थी। किया पर वर्तिनी उसको, दयावर हों तो ऐसे हों ॥ वीर० ४॥ मंखली पुत्र क्रोधा ने, जलाए दोय मुनिवर को। किया नहिं क्रोध कुछ उसपर, क्षमाधर हों तो ऐसे हों ॥ वीर० ५ ॥ जमाली दुष्ट निन्हव को, दिया सुरलोक रहने को। चतुरसागर मुनीजनके, महेश्वर हों तो ऐसे हो ॥ वीर० ६॥
॥इन्द्र सभा ॥ अक्षत द्रव्य मोक्ष सुख अक्षत, अक्षत केवल ज्ञान । अक्षत तत्त्व योनि पुनि अक्षत, पांचों अक्षत जान ॥७॥
(रागनी आशावरी) नाथ तेरे अक्षत सुख से यारी, मैंने करलइ है सुखकारी ॥ तेरे घर में भूख न प्यासा, जन्म नहीं नहिं मारी । रोग न शोक न वृद्ध न बाल न, ये सब अचरजकारी ॥ ना. ८ ॥ स्वामी शिव वनिताको