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जैन
॥ राग (ढाल ) ॥
( हम आये हैं शरण तिहारे, तुम प्रभु शरणागत तारे, ) श्रीनमि जिनवर चरण कमलमें, नयन भमर युग धरियें रे । तिण किय गुण मकरंद पानसे, चेतन मदमत करियें रे || वारि चेतन० २ ॥ एह चरण कज अहनिश विकसे, परकज निसि कुमलावे रे | ए न वले बलि तुहिन अनलसे अपर कमल बल जावे रे ! वा० ॥ ए पद कज गुण मधुरस पीवत, जीव अमरता पावे रे । अपर कमल रस लोभी मधुकर, कजगत गज गिल जावे रे || वा० ४ ॥ परकज निजगुण लच्छिपात्र हैं, पदकज संपद् दवें रे । तातें पद शिवचन्द्र जिणंदके अहनिशि सुरवर सेवें रे || वा० ५ ॥
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॥ काव्य ॥
सलिल चन्दन पुप्प फलवजैः सुबिमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः जिनममीभिरहं वसुभिर्य्यजे ||६|| ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् नमि जिने - न्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूप, दीप, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा ।
द्वाविंशतितम श्री नेमी जिन पूजा ॥ दोहा ॥
बावीसम जिन जगगुरू, ब्रह्मचारि विख्यात । इण वंदन चंदन रसे, पाप ताप मिट जात ॥१॥ ॥ राग रामगिरि (ढाल ) |
( गात्र लूहे जिन मन रंगसूं रे देवा )
नेमि जिणंद उर धारिये रे, विषय कषाय निवारिये रे । वारिये हां रे वाला वारिये, ए जिनने न विसारिये रे || वा० २॥ जलधर जिम प्रभु गरजता रे, देशना अमृत बरसता रे । बरसता हां रे वाला वरसता, भविक मोर