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पूजा-विभाग ....... ................................................. .................. .................... ..
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। तीरथ, चैत्य पंच परकारा। एह वर तीरथ थावर कहिये, दीठां दुरित ।
बिदारा ॥ ती० ६ ॥ श्रीसीमंधर प्रमुख वीश जिन, विहरमान भवतारा । में दोय कोडि केवल विचरंता, जंगम तीर्थ उदारा ॥ ती० ७ ॥ संघ चतुर्विध,
जंगम तीरथ, जिन शासन उजियारा । वर अनंत गुण भूषण भूषित, हैं जिनको नमत जिनसारा ॥ ती० ८ ॥ ए तीरथ परभावन करिये, शुभ
भावन आधारा । शिव कज जल विंशति तम पदकी, जाऊं प्रतिदिन बलिहारा ॥.ती. ९ ॥ ए तीरथ परभावन करतो, मेरु प्रभु अविकारा । पद जिन हर्ष लहीने तरिया, भवभय जलधि अपारा ॥ ती० १० ॥
॥ काव्य ॥ महा महानन्दपद प्रदाय, जगत्रयाधीश्वर वंदिताय । जिनश्रुत ज्ञान पयोनदाय, नमोऽस्तु तीर्थाय, शुभंददाय ॥११॥ ॐ ह्रीं श्रीतीर्थाय नमः ।
विशतितम पद स्तुति
॥राग गरबो ॥ (सुणि चतुर सुजाण परनारी सूंप्रीतड़ी) चित हरख धरी, अनुभव रंगे बीस परमपद वंदिये । शिवं रमणि वरी, केवल सखिय सहाय, करी । चिर नंदिये । ए वीस 'चरण असरण सरणा, चिर संचित दुरित
तिमिर हरणा । नित चित ए पद समरण धरणा !!१॥ ए पद समरण जिण 1 चित धरिया, तरिया तरसे तरे भव दरिया । सदानंत भविक सहु भयहरिया
॥ चि० २ ॥ ए पद गुण सागर मनुहारा, वर्णन तरणी ए बहुहारा । इन्द्रादिक सुर न लह्यो पारा ॥ चि० ३॥ ए पद अतिशय महिमा धारा, आश्रित पद कमला भरतारा । जिनचन्द्रानन्द घन पद कारा ॥ चि० ४ ॥ जिन हर्ष सूरिन्द के शिव करणा, चन्द्रामल गुण विंशति चरणा हुययो प्रभु अरज ए अब धरणा ॥ चि० ५॥ -
कलश ए वीश थानक भुवन नंदन अघ निकन्दन जानिये । विवुधेन्द्र चन्द्र नरेन्द्र वंदित पद जिनेन्द्र बखानिये । ए वीश पद भव जलधि तारण,
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