________________
జపానుthathaik
a
rranty
మము
.........mernamann...
अन्नन्नयनत्र य
पूजा-विभाग करमा वरणें ॥ मे० ॥ तपसे शोभ लही त्रिभुवनमें, केवल कमलाभरणे ॥ मे० ८ ॥ लाख इग्यारह असी हजारा, पंच सहसदिन खिरणें ॥ मे० ॥ मासखमण करि नंदन मुनिवर, पाम्यो फल शिव धरणे ॥ मे० ९ ॥ तप करियो गुणरयण संवत्सर, खंधक समतादरणे ॥ मे० ॥ चउदसहस मुनि में कह्यो अधिको, धन्नो तप आचरणे ॥ मे० १० ॥ बाह्यअभ्यंतर भेदें ए तप, बार भेद अधिकरणें ॥ मे० ॥ वसने कनककेतु पाम्या पद, जिन हरणे भवतरणें ॥ मे० ११ ॥
त्रतत्र
॥ काव्य॥
प्र
लखीसरोजावलितावणस्स, सरूवसंलग्ग सुपावणस्स। अमंगलाणो कुहदुद्दवरस, णमो णमो णिम्मल सत्तबस्स ॥१२॥ ॐ ह्रीं श्री तपसे नमः ।
पंचदश गौतमपद पूजा
॥ दोहा ॥ . गौतम गणधर पनरमे, पद सेवो सुप्रसन्न । वलि सहु जिन गणधर नमो, चौदेसे बावन्न ॥१॥ दान सकल जगवश करे, दान हरे दुरितारि । मन वांछित सहु सुख दिये, दान धरम हितकारि ॥२॥
॥राग सोरठ॥
(तेरी प्रीति पिछानी हो प्रभु मैं,) पनरम पद गुण गाना हो भवि ।। पनरम० ॥ भाव धरी करिये मन रंगे, परम सुपात्रे दाना हो भवि पनरम० ॥ ३ ॥ पात्र कह्या द्रव्य भाव । दुभेदें, द्रव्यलंछन ए जाना ॥ हो भवि प० ॥ सर्वोत्तम उत्तम हुवे भाजन रतनकनक रूपाना ॥ हो भवि प० ॥ ४ ॥ मध्यम पात्र कहीजे एहवा, ताम्र धातु निपजाना ॥ हो भवि प० ॥ पात्र लोहादिक अपर जातिना, तेह जघन्य कहाना ॥ हो भवि प० ॥ ५ ॥ भावपात्रनो लंछन कहिये, सुणिये सुगुण सयाना ॥ हो भवि प० ॥ पंचम चरणधरे वलि वरते क्षीणमोह गुण ठाना ॥ हो भवि प० ॥६॥ रतनपात्र सम ते सर्वोत्तम, पात्र कह्यां जिन
Saatholoclinedusariladasthalalalahkakakakakakakistanohasamabakistakalalailitishshaskalatatishshikitishs0SYNishshapaktiplineNotebalatakobapoompatibhattasootikhaitakistake
सन्नतप्रधान-
--
-Aawara
"लयमल्ललल्याणकालल्लामाल
46