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जैन-रत्नसार
-जलका कलश, केशर, अंगलूहण, वासक्षेप, फूल अनेक वर्णके, फूलोंकी माला, धूप की गोली, ( गन्धवटी ) ध्वजा १, आभूषण, फूलधरा, फूलों की बरसा और गुलाबजल गुलाबपास में भर कर छिड़के, अष्टमङ्गलीक, धूप इसके बाद पूर्ववत अष्ट प्रकारी पूजा करे ।
विंशतिस्थानकर पूजा श्री जिनेन्द्रपद पूजा ॥ दोहा ॥
सुख संपति दायक सदा, जगनायक जिनचंद | विधन हरण मंगल करण, नमो नाभि नृप नंद ॥१॥ लोकालोक प्रकाशिका, जिनवाणी चित धार । विंशतिपद पूजन तणो, कहस्यं विधि विस्तार ॥२॥ जिनवर अंगे भाखिया, तप जप विविध प्रकार । विंशतिपद तपसारिखूं, अपर न कोई उदार ॥३॥ दानशील तप जप क्रिया, भाव बिना फल हीन । जैसे भोजन लवण बिन, नहीं सरस गुण पीन ॥४॥ जे भवियण सेवें सदा, भावे स्थानक बीश । ते तीर्थंकर पद लहे, वंदे सुरनर ईश ॥५॥
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॥ ढाल ॥
श्री अरिहंत पद सिद्धपद ध्यावो, प्रवचन आचारिज गुण गावो । स्थविर पंचम पद पुनरुवझाया, तपसि नाण दंसण मन भाया ||६||
१ एक श्वास से तीन णमोकार गिनकर सधवा स्त्रियां ध्वजा शिर पर रख कर गाजेबाजे के साथ तीन फेरी देवें और पुजारी शंख बजाता रहे । ( मरुस्थल ) मारवाड़ देश में इस ध्वजा को ग्रहण कर सधवा स्त्रियां बड़े समारोह के साथ नगर में घुमाती हैं । २ पृष्४ ३०६
३ जलका कलश, अंगलूहूण, केशरकी कटोरी, फूल, धूप, दीपक, अक्षत, नैवेद्य, फल, नारियल, हरएक पूजा में उपर्युक्त सामग्री के साथ कम से कम एक रुपया अवश्य होना चाहिये ।