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पूजा-विभाग ॥ ना० ॥६॥ सोलमी नाटक्क पूजा, सुरियाभे रावण्ण कीनी। सूगंध तत्ता थेइया, जिनप भगते भविक लीणा, आणंद तत्ता थेइया ॥ ना० ॥७॥
सप्तदश वाजिन पूजा
॥ दोहा ॥ ततधन सुखिरे आनघे, वाजिन चउविध वाय ।
भगत भली भगवंतनी, सतरमी ए सुखदाय ॥१॥ सुरमद्दल कंसालो, महुयर मद्दल सुवज्जए पणवो । सुरणारि णंदि तूरो, पभणेइ तं णंद जिणणाह ॥२॥
॥ राग मधु माधवी ॥ तूं नंदिआनंदि बोलत नंदी, चरण कमल जन्तु जगत्रय वंदी । ज्ञान निरमल बावन मुख वेदी, तिवलि बोले रंग अतिही आनंदी ॥ तूं० ॥३॥ भेरी गयण वजंती, कुमति त्यजंती। सेवे जैन जयणाएवंती, शासन, जयवंत नदंती। उदयसिंह परिपरिय वदन्ती ।। तू. ॥४॥ सेव भविक मधु माधव फेरी, भवना फेरी णप्पभणंती, कहे साधु सतरमी पूजा वाजिन सब, मंगल मधुर ध्वनिकरहकहति ॥ तू० ॥५॥
कलश
॥ राग धन्या श्री ॥ भवि तूं भण गुण, जिनके सब दिन, तेज तरणि मुख राजे । कवित शतक आठ थुणत शक्रस्तव, थुय थुय रंग हम छाजे ॥ भ० ॥६॥ अणहिलपुर शांति शिवसुख दाई, नवनिधि सिद्ध आवाजे । सतर सुपूज सुविधि श्रावककी भणी मैं भगति हित काजे ॥ भ० ॥७॥ श्री जिनचन्द्रनूरि खरतर पति, धरम वचन तसु राजे । संवत् सोल अटार श्रावण धुरि, पंचमी दिवस समाजे ॥ भ० ॥८॥ दया कलश गुरु अमरमाणिक्यवर, तासु पसाय सुविधि हुइ गाजे । कहे साधुः कीरति करत जिन संस्तव, शिवलीला
सुख साजे । भ० ॥९॥ : : यह पूजा साधु कीर्तिजीकी बनाई हुई है और सम्बत् १६१८ श्रावण वदी ५ को बनी है।
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