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मस्त्र
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जैन-रत्नसार
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प्रजननत्र.प्र.पू.यटनप्रपत्र गणतनमननननननननन
फूला केरे बाग में, बैठा श्री जिनराज । ज्यू तारा में चन्द्रमा, त्यू शोभे महाराज ॥१३॥ जग में तीरथ दो बडा, शत्रुञ्जय गिरनार । इण गिरि ऋषभ समोसर या, उणगिरि नेमकुमार॥१४॥ भावे जिनवर पूजिये, भावे दीजे दान । भावें भावना भाविये, भावें केवल ज्ञान ॥१५॥ मोहनी सूरत पास की, मो मन रही लुभाय । ज्यों मेंहदी के पात में, लाली लखी न जाय ॥१६॥ प्रभु नाम की औषधी से, सब संकट टल जाय । रोग शोक दारिद्र दुःख, दर्शन से भग जाय ॥१७॥ राजमती गिरवर चढी, वन्दन नेम कुमार। स्वामी अजहु न वावड़े, मो मन प्राण अधार ॥१८॥ धन ते साई पंखिया, बसे जो गढ़ गिरनार । चूंच भरे फल फूल सू, चाढ़े नेम कुमार ॥१९॥ श्री केशरिया नाथ कू, नमन करूं चितलाय । ऋद्धि बुद्धि मोहि दीजिये, दिन दिनअधिक सवाय ॥२०॥ श्री केशरिया नाथ के, केशर हंडा कीच । मरुदेवा के लाडले, बसे पहाड़ां बीच ॥२१॥ धंदोकर धन जोडियो, लाखां ऊपर कोड । मरती वेला मानवी, लियो कंदोरो तोड ॥२२॥ प्रभुजीका नाम कल्याण है, गुरुका वचन कल्याण । सकल सभा कल्याण है, जब प्रगटीराग कल्याण ॥२३॥ फूल इतर घी दुधमें, तिलमें तेल छिपाय । ज्यों चेतन जड़ कर्म संग, बंधे ममत दुख पाय ॥२४॥ ज्यों श्वास फल फूल में, दही दृध में धी। पावक काप्ठ पाषाण में, ज्यों शरीर में जी ॥२५॥ . .
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চলুতফরুল্করুম্মম্ম