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पूजा-विभाग
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अष्टम गंधवटी पूजा
॥दोहा॥ सुख देवा दुःख मेटवा, यही आपकी वान । मुझ गरीबकी वीनती, सुन लीजे भगवान ॥१॥ अपनी अपनी गरज को, अरज करें सब कोय । मैं गरजी अरजी करूं, कि जैसी मरजी होय ॥२॥ शान्तिनाथ साता करो, तन मन करो अनन्द । आप तो पूरणब्रह्म हो, जगत उजागर चन्द ॥३॥ सिद्धाचल समरूं सदा, सोरठ देश मझार । मानव भव पामी करी, चन्दु बारम्बार ॥४॥ शत्रुञ्जय सरिखा गिरवरूं, ऋषभ सरीखा देव । पुण्डरीक सरिखा गणधरूं, वलि वलि वन्दू हेव ॥५॥ श्री केशरियानाथजी, तुम हो मोटा देव । आनधरूं शिर ताहरे, करूं तुम्हारी सेव ॥६॥ यह चार शरणे जगतमें, और न शरणा कोय । इनको तो ध्याते थके, मन वंछित फल होय ॥७॥ दया सुगति तरु वेलडी, रोपी आदि जिनन्द । श्रावक कुलमण्डण भई, सींची सर्व जिनन्द ॥८॥ हत्था जेह सुलक्षणा, जे जिनवर पूजन्त । जे जिनवर पूज्या नहीं, पर घर काम करन्त ॥९॥ वाडी चम्पो मोगरो, सोवन कूपलियांह । पास जिनेसर पूजसां, पांचू अंगुलियांह ॥१०॥ जिवडा जिनवर पूजिये, पूजाना फल होय । राजनमें परजानमें, आण नलोपे कोय ॥११॥ पूरव विदेह विराजते, श्री सीमंधर स्वाम । सेवा करस्यां प्रभुतणी, नित उठ लेस्यां नाम ॥१२॥
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