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पूजा-विभाग
३३५ ॥राग गोडी तथा पूर्वी ॥ मेरे प्रभुजी की आणंद, पूजो में ॥ वास भुवन मोह्यो सब लोए, संपदा भेलक्री ॥ पूजा० ३ ॥ सत्तर प्रकारी पूजा विजय, देवा तत्ता थेई । अप्परमित्त गुण तोरा चरण नेवाकि ॥ पूजा० ॥ ४ ॥ कुकुम चन्दनवासे, पूजीये जिनराज तत्ता थेई। चातुर्गति दुखें गौरी चातुर्थी धनकि । ॥ पूजा० ॥ ५॥
पंचम पुष्पारोहण पूजा
॥ दोहा ॥ मन विकसे तिम विकसतां, पुष्प अनेक प्रकार । प्रभुपूजा ए पंचमी, पंचम गति दातार ॥ १ ॥
॥ राग कामोद ॥ चंपक केतकि मालति ए, कुंद किरण मुच कुद। सोवन जाइ 1 जूईका, बिउलसिरि अरविंद ॥ २ ॥ जिनवर चरण उवरि धर ए, मुकु
लित कुसुम अनेक । शिव रमणीवाहवासे वर वरे, विधि जिन पूज विवेक ॥ ३॥
॥ राग कानडा ॥ ___सोहेरी माई वरपे मन मोहेरी माई वरणे । विविध कुसुम जिनचरणे ॥ सो० ॥ विकसी हसिअ जंपे साहिबकू, राखि प्रभु हम, सरणे ॥ सो० ४ ॥ पंचम पूजा कुसुम मुकलितकी, पंचविषय दुख हरणे, ॥ सो० ॥ कहे साधुकीरति भगति भगवंतकी, भविक नरा सुख करणे ॥सो०५।।
षष्ट मालारोहण पूजा
॥ राग आशावरी दोहा ॥ छही पूजा ए छती, महा सुरभि पुप्फमाल । गुण गूंधी थापे गले, जेम टले दुखजाल ॥१॥
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माला पटाये।