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पूजा - विभाग
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मिल्योरी सुमतिसंग, जागी सुदिश शुभ मेरे दिनकी । कहे साधु कीरति सारंग भरि करतां, आस फली मेरे मनकी ॥ पू० १२॥
द्वितीय विलेपन* पूजा
॥ राग रामगिरी ॥
गात्र लूहें जिन मनरंगसु रे देवा || गा० ॥ सखरसुधूपित वाससूं हां हो रे देवा वाससूं । गंध कसायसुं मेलिये, ए नंदन चंदन चंद लिये हां हो रे देवा ॥ नं० ॥ मांहे मृगमद कुंकुम भेलीये, कर लीये रयणपिंगाणी कचोलिये हां हो रे देवा क० ॥ १॥ पग जानु कर खंधे सिरे रे हां हो रे देवा । भाल कंठ उदरंतरे । दुख हरे हां हो रे देवा । सुख करे तिलक नवे अंग कीजिए । दूजी पूजा अनुसरे हां हो रे देवा अ० | श्रावक हरि विरचे जिम सुरगिरे । तिम करे हां हो रे देवा । जिण पर जन मन रंजीए ॥२॥ ॥ राग ललितमां दोहा ||
करहुं विलेपन सुख सदन, श्रीजिनचंद शरीर | तिलक नवे अंग पूजतां, लहे भवोदधि तीर ||३|| मिटे ताप तसु देहको, परम शिशिरता संग | चित्त खेद सवि उपसमें, सुखमें समरसि रंग ॥४॥ ॥ राग बिलावल ॥
विलेपन कीजे जिनवर अंगे। जिनवर अंग सुगंधे ॥ वि० ॥ कुंकुम चंदन मृगमद यक्षकर्द्दम, अगरमिश्रित मनरंगे ॥ वि० ५ ॥ पग जानू कर खंधे सिर, भालकंठ उर उदरंतर संगे । विलुपित अघ मेरो करत विलेपन, तपत बुझति जिम अंगे || वि० ६ || नवअंग नव नव तिलक करत ही, मिलत नवे निधि चंगे, कहे साधु तन शुचिकर सुललित पूजा । जैसे गंग तरंगे ॥ वि० ७ ॥
' इस पूजा के बाद प्रतिमाजी पर जरासी जल का धारा देवें ।
दूसरा स्नात्रियां केशर की कटोरी लेकर खड़ा रहे ।
केशर चढ़ावे ।
학생및 수학
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