SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूजा - विभाग ३२७ जाणिये वस्तुषट्द्द्रव्यभावा, न होवेविकत्था निजेच्छास्वभावा ||३|| हुई पंचमत्यादि सुज्ञानभेदे, गुरुपासथी योग्यता तेहवेदें । वली ज्ञेय हेया उपादेयरूपें लहेचित्तमां जेम ध्याने प्रदीपें ॥४॥ भव्य नमो गुण ज्ञानने, अनंतता, भेदाभेद स्वभावें जी ॥ ढाल ॥ स्वपर प्रकाशक भावें जी । पर्याय धरम ॥ भ० ॥५॥ ॥ चाल ॥ जे मोक्ष परणति सकल ज्ञायक बोधभाव विलासता, मति आदि पंच प्रकार निरमल सिद्धसाधन लंछता । स्याद्वादसंगी तत्त्वरंगी प्रथम भेद अभेदता, सवि कल्पने अविकल्प वस्तु सकल संशय छेदता ||६|| ॥ ढाल ॥ भक्ष अभक्ष न जे विण लहिये, पेय अपेय विचार | कृत्य अकृत्य न जे बिन लहिये, ज्ञानते सकल आधार रे ॥ भ० सि० ७ ॥ प्रथम ज्ञान ने पीछे अहिंसा, श्रीसिद्धान्ते भाख्यूँ | ज्ञानने वन्दो ज्ञान मनिन्दो, ज्ञानी ये शिवसुख चाख्यूं रे ॥ भ० सि० ८ ॥ सकल क्रियानूं मूल ते श्रद्धा, तेहनूं मूल जे कहिये । तेह ज्ञान नित नित बन्दीजे, ते विन कहो किम रहिये रे ॥ भ० सि० ९ ॥ पंच ज्ञानमांहे जेह सदागम, स्वपर प्रकाशक तेह | दीपकवर त्रिभुवन उपगारी, वलि जिम रवि शशि मेह रे ॥ भ० सि० १०॥ लोक ऊरध अधतिर्यग्ज्योतिष, वैमानिकने सिद्धी । लोक अलोक प्रगट सब जेहथी, ते ज्ञाने तुझ शुद्धी रे ॥ भ० सि० ११ ॥ ॥ ढाल ॥ ज्ञानावरणी जे कर्मे छें, क्षय उपशम तसु थाये रे । तो होइ एहिज अतिमा, ज्ञान अबोधता जाये रे ॥ वी० १२ ॥ ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् सिद्धचक्राय ज्ञानपदे अष्टद्रव्यं मुद्रां यजामहे स्वाहा ॥
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy