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....... पूजा-विभाग
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वर अखय निर्मल ज्ञान भासन सर्व भाव प्रकासता, निज शुद्ध श्रद्धा आत्म भावे चरण थिरता वासता ॥ जिन नामकर्म प्रभाव अतिशय प्रातिहारज शोभता, जगजन्तु करुणावन्त भगवन्त भविकजनने थोभतो ॥९॥
॥ ढाल ॥ (श्रीसीमंधर साहिब आगे)। तीजे भव वर थानक तप करी, जिन बाध्यूं जिन नाम ॥ चउसठ इन्द्रे पूजित जे जिन, कीजे तासु प्रणाम रे । भविका सिद्धचक्र पद वन्दो रे ॥ भ० ॥ जिम चिरकाल अनन्दो रे ॥भ० ॥ उपशम रसनो कन्दो रे ॥ भ० ॥ रत्नत्रयीनो वृन्दो रे ॥ भ० ॥ सेवे सुरनर इन्दो रे ॥ भ० सि० १० ॥ जेहने होय कल्याणक दिवसे, नरकें पिण उजवायूँ । सकल अधिक गुण अतिशय धारी, ते जिन नमि अघ टालू रे ॥ भ० सि० ११ ॥ जे तिहुं नाण सम्मग्ग उपन्ना, भोग करम. खिण जाणी। लेइ दीक्षा शिक्षा दिये जगने, ते नमिये जिन नाणी रे ॥ भ० सि० १२ ॥ महागोप महामाहण कहिये, निर्यामक सत्थवाह ॥ ओपमा एहवी जेहने छाजे, ते जिन नमिये उछाहे रे ॥ भ. सि० ॥ १३ ॥ आठ प्रातिहारज जसु छाजे, पैंतीस गुणयुत वाणी ॥ जे प्रतिबोध करे जगजनने, ते जिन नमिये प्रोणी रे ॥ भ० सि० १४॥
॥ ढाल ॥ - अरिहन्तपद ध्याता थको, व्वह गुण पर्याये रे ॥ भेद छेद करि आतमा,
अरिहन्त रूपी थायरे ॥१५।। वीर जिणेसर उपदिसे,तुम सांभलजो चित लाई
रे ॥ आतम ध्याने आतमा, ऋद्धि मिले सब आई रे ॥ वी० १६ ॥ ॐ ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय । श्रीमत्सिद्धचक्राय अरिहन्तपदे अष्टद्रव्यं मुद्रां यजामहे स्वाहा ।।
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