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________________ SITE KEYtral Lab KINN to output tent to intentar tant ***+1994493979 पूजा - विभाग संगविवर्जितं, जिनपतेः पुरतोऽस्तु सुहर्षितः || ४ || ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमज्जिनेन्द्राय धूपं यजामहे स्वाहा ||४|| धूप खेवे । अर्थ - यह अपवित्र वस्तुओं के सम्पर्क से रहित तथा समस्त कर्म रूपी विशाल काष्ठ को जलाने वाला हर्ष के साथ मेरे द्वारा दिया हुआ शुद्ध सम्बर भावरूप जो सुन्दर धूप वह जिनेन्द्र भगवान् के आगे खेता हूं । दीप पूजा ॥ दोहा ॥ 40 ******* मणिमय रजत ताम्रना, पात्र करी घृत पूर । बत्ती सूत्र कसुंबनी, करो प्रदीप सनूर ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ मंगल दीप वधावो गावो जिन गुणगीत, दीपतणी जिम आलिका मालिका मंगलनीत । दीपतणी शुभज्योती द्योती जिन मुखचन्द, निरखी हरखो भविजन जिम लहो पूर्णानन्द ॥२॥ ॥ चाल ॥ ३१३ जिन गृहे दीप माला प्रकासे, तेहथी तिमिर अज्ञान नासे । निज घटे ज्ञानज्योती विकासे, तेहथी जग तणा भाव भासे ॥३॥ ॥ श्लोक ॥ भविक निर्मलबोध विकाशकं, जिन गृहे शुभदीपकदीपनं । सुगुणराग विशुद्धसमन्वितं दधतु भावविकाशकृतेजनाः ||५|| ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमज्जिनेन्द्राय दीपं यजामहे स्वाहा ||५|| दीपक चढ़ावे । अर्थ - भक्तजन मंगल तथा निमल ज्ञानके प्रकाशक सुन्दर गुण एवं सच्चे प्रेमसेयुक्त सुन्दर दीपकका प्रकाश अपने हृदयभावके विकाशके लिये जिनेन्द्र भगवान्‌ के मन्दिर में चढ़ावे । अक्षत पूजा ॥ दोहा ॥ सार । अक्षत अक्षत पूरसुं, जे जिन आगे स्वतिक रचतां विस्तरें, निजगुण भर विस्तार ॥१॥ నా మనసును మ తలనడమన
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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