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जैन-रनसार ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कामदेवाधिपति ममाभीप्सितं पूरय पूरय स्वाहा ॥३॥ सात बार इस मन्त्र को पढ़ कर मुख धोवे ।
ॐ ह्रीं अमले विमले विमलोद्भवे सर्व तीर्थ जलोपमे पां पां बां बां अशुचिना शुचिर्भवामि स्वाहा ॥ell इस मन्त्र को सात बार पढ़कर स्नान करने का जल मन्त्र और स्नान करे ।
ॐ ह्रीं ॐ क्रौं नमः ॥५॥ सात बार इस मन्त्र को पढ़ कर धोती उत्तरासन धारण करे।
ॐ नमो आँ ह्रीं क्रौं अर्हते नमः इस मन्त्रको सात बार पढ़कर केशर या चन्दन से मस्तक में तिलक करे ।
ॐ ह्रीं अवतर २ सोमे सोमे कुरु कुरु वल्गु वल्गु निवल्गु निवल्गु सुमनसे सोमनसे महुमहुरे ॐ कवलि कः क्षः स्वाहा । इस मन्त्रको सात बार पढ़कर मैनफल मरोडफली हाथमें बांधे ।
. ॐ ह्रीं अहं भूर्भुवः स्वधाय स्वाहा । इस मन्त्र को सात बार पढ़कर मस्तक पर वासक्षेप करे।
इस प्रकार अपना अङ्ग शुद्ध कर भगवान् की प्रतिमा को पालकी या रथ में विराजमान करे और गाजे बाजेके साथ गङ्गा आदि महानदी पर जावे और वहां जाकर एक थाली में लहंगा, ओढ़नी, चूड़ी का जोड़ा, मेंहदी, मिठाई, फल, फूल, नगदी आदि सब सामग्री सजाकर गङ्गादेवी की पूजन करे । मध्य धारा में जाकर अष्टद्रव्य से निम्न मन्त्र के द्वारा जल की पूजन करे।
क्षीरोदधि स्वयंभूश्च सरे पद्मा महाहदे । शीता शीतोदकाकुण्डे जले - स्मिन् सन्निधिं कुरु ॥१॥ गङ्गे च जमुने चैव गोदावरी सरस्वती । कावेरी नर्मदा सिन्धो, जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥२॥ इसके बाद निम्न मन्त्र से मन्त्रे हुए कलश से जल निकाले ।
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