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विधि-विभाग
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म त नतांगिरां ॥१॥ पीछे 'श्री शक्रादि समस्त देवता निमित्तं करेमि काउसग्ग' अणत्थ. कह एक णमोक्कार का काउसग्ग करे पीछे स्तुति कहे।
शक्रादि समस्त देवता स्तुति ॥१७॥ श्री शक्रप्रमुखायक्षाः जिनशासन संस्थिताः । देव्या देव्यस्तदन्येऽपि संघ रक्षत्वपायतः ॥१॥ यह स्तुति कहने के बाद 'श्री शासनदेवी निमित्तं * करेमि काउसग्गं' अणत्थ. चारलोगस्स या सोलह णमोकार का काउसग्ग करे पीछे शासन देवता की स्तुति कहे ।
श्री शासनदेवी की स्तुति ॥१८॥ श्रीमद्विमानमारूढ़ा यक्षमातङ्ग सेविताः । सा मां सिद्धायिकापातु चक्रे चापेषु धारिणी ॥१॥ बाद में लोगस्स. कहके बैठे पीछे चैत्य वन्दन णमुत्थणं०, जयवीयराय० पर्यन्त कहे। . ____ इस प्रकार सब क्रिया विधान कर बड़े घड़े में पञ्चतीर्थजी की प्रतिमा
और नवपदजी का गट्टा शान्ति१ स्नात्रर करनेवाले को एक स्वास से तीन
णमोकार गिन कर स्थापित करे उनके आगे पांच सुपारी पांच बादाम थोड़े में से चावल, चांदी नगदी, भगवान् के सम्मुख भेटस्वरूप रक्खे प्रतिमा
स्थापना करने के बाद दो रनात्रिये अपने दो हाथों में पञ्चामृत से भरे हुए । बड़े बड़े कलश लेकर मैनफल मरोडफली बांध दे दो स्नात्रिये पञ्चामृत 1 से उन दोनों बड़े कलशों को भरते रहें एक स्नात्रिया चवर डुलावे एक
नात्रियो केशर का छींटा और फल एक एक णमोकार मन्त्र पढ़कर बड़े घड़े में प्रतिमाजी पर चढ़ावे और दो स्नात्रिये एक एक णमोकार गिन
शान्ति पूजा करनेवाले स्नात्रियों को एकासण तप और अष्टप्रहर ब्रह्मचर्य का पालन करना परमावश्यक है यदि इतनी तपस्या भी करना मंजूर न हो तो उन्हें स्नात्रिया नही यनना चाहिये।
२ स्नान का जल शान्ति पूजा वाले घड़े में हो डाल दे।
नोट-दशदिग्पाल तथा नवग्रह पूजन मन्त्रों में गृहन्तु की जगह गृहणन्तु थप गया है। पाटर वर्ग गृहन्नु पढ़ें।
-मंशोधक
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