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प्रधानमन्त्र प्राप्रप्रयाग्रामपत्रमग्राममननप्रा
जैन-रत्नसार उद्दाम । प्रकटा कर पावें यहां, परमातम विश्राम ॥ २० ॥ सिद्ध अनन्तों
के परम, पुनीत शान्त अणुयोग। मूर्तरूप यह सिद्ध गिरि, टारे भव दुःख | भोग ॥ २१ ॥ सिद्ध रूप की साधना हित सुन्दर आकार । सिद्धायतन | यहां करें, त्रिविध ताप अपहार ॥ २२ ॥ काल चाल से जीर्ण बे, होते हैं | निर्धार । तीर्थ भक्त भाविक करें, उनका जीर्णोद्धार ॥ २३ ॥ इस अवसपिणि काल में, हुए असंख्य उद्धार । उनमें भी सोलह बड़े, हुए विदित संसार ॥ २४ ॥ ऋषभ देव उपदेशतें, भरत भरतपति खास । करें प्रथम उद्धार को, पावन पुण्य प्रकाश ॥ २५ ॥ भरत आठवें पाट में, दण्डवीर्य भूपाल । उद्धारक दूजे हुए, जिन शासन उजमाल ॥ २६ ॥ इशानेन्द्र उद्धार को, करे तीसरी बार । दर्शन दर्शन योगते, तीन जगत जयकार ॥ २७ ॥ चौथे सुरलोकेशने, किया चतुर्थोद्धार । तीर्थ भक्ति करते भविक, पावें भवोदधि पार ॥ २८ ॥ पंचम पंचम देवपति, तीर्थोद्धारक धन्य । तीरथ सेवा जो करें, ता सम धन्य न अन्य ॥ २९ ॥ भुवनपतिअधिपति करें, छठा जिर्णोद्धार । होता जिर्णोद्धार में, अठगुण पुण्य प्रचार ॥ ३० ॥ तीरथ वर उद्धार को, करें सातवीं बार । सगर चक्रवर्ती जयी, तीरथ भक्त उदार ॥ ३१ ॥ व्यन्तरेन्द्र सुनकर करें, अभिनन्दन जिन। पास । अष्टम वर उद्धार को, आठ करम धन नाश ।। ३२ ॥ नवमें उद्धारक हुए, चन्द्रयशा नरनाथ । चन्द्रप्रभु के पौत्रवर, शिव रमणी के नाथ ॥ ३३ ॥ निज पितु शान्तिजिनेश के, सुनकर शुभ उपदेश । दशवें उद्धारक हुए, चक्रधरेश विशेष ॥ ३४ ॥ मुनिसुव्रत स्वामी समय, दशरथ सुत श्रीराम । ग्यारहवें उद्धार को, करें परम गुणधाम ॥ ३५ ॥ निज जननी कुन्ती कथन, पाण्डु पुत्र सुविचार । पाप नाश कारण किया, बारहवां उद्धार ॥ ३६ ॥ विक्रम संवत एकसौ-आठ बीतते सार । पोरवार जावड़ करे, तेरहवां उद्धार ॥ ३७ ॥ संवत वार तिहत्तरे, बाहडदे श्रीमाल । चौदहवा, उद्धार कर, वरे विजय वरमाल ॥ ३८ ॥ संवत तेर इकहत्तरे, श्रीयुत । समराशाह । पनरहवां उद्धार कर, पाये पुण्य अथाह ॥ ३९ ॥ पनरह सौ । सत्यासी में, दोसी कर्माशाह । सोलहवां उद्धार कर, पाई शिवपुर राह ॥४०॥
स्त्रप्रतिप्रश्रमप्रताप बनननननन्त्रप्रपत्र प्रस्त