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नत्रजननननननननननन प्रमाणपत्र नवनग्राम
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जैन-रनसार ॥१७॥ धर्मराज समवति गुण, महासत्य यमराज । है सिद्धाचल किन्तु यह, मृत्यु विनाशक साज ॥१८॥ धर्मधातु श्रीधन सुगत, महा बोधि भगवान् । है सिद्धाचल पर न है, क्षणिक वाद परधान ॥१९॥ श्रीनन्दन प्रद्युम्न पद, कला केलि अभिराम । है सिद्धाचल विश्व में, पर नहीं मन्मथ काम ॥२०॥ क्षमा मूर्ति अचलाकृति, सर्वसहा समान । श्री सिद्धाचल है सदा, पर नहिं कुपद विधान ॥२१॥ संवर जीवन सर्वतो मुख घन रस परिणाम । है सिद्धाचल सर्वथा, पर नहिं जड़ता धाम ॥२२॥ रत्नाकर पावन निधि, दिव्य महाशय नव्य । पर सागर जल निधि नहीं, यह सिद्धाचल भव्य ॥२३॥ पावक तमनाशक शुचि, मल जड़ता क्षय हेतु । है न हुताशन सिद्धिगिरि, शिव मन्दिर वर केतु ॥२४॥ जगत्प्राण शीतल महा बल पवमान अमान । नूतन सिद्धाचल अहो, अप्रकम्प गुणवान ॥२५॥ जय जय सिद्धाचल विमल गुण जय जय गिरिराज ! । जय जय अनुभव सिद्धपद जय त्रिभुवन सिरताज ॥२६॥ जय जय सुख सागर विभो ! जय जय जगदा
धार !। जय तीर्थेश्वर जय अभय, दाता जय जयकार ! ॥२७॥ जय . भगवन् अघहर सदा, जयशत्रु अय भाव ! । जय साधक सिद्धिस्थिते! al जय सुव्रत विधि दाव ! ॥२८॥ जय सुरगण नायक हरि, पूज्य दयामये
देव ! । जय जय मोह महोदधि, शोषकपद स्वयमेव ॥२९॥ जय सविनय सुकवीन्द्र गण कीर्तित गुणमणिमाल । जय सुचिरंजय सिद्धगिरि, शरणागत प्रतिपाल ॥३०॥
चैत्यवन्दन के बाद “जंकिंचि०, णमोत्थुणं०, जावंति. चेइयाई, जावंत केविसाहू, नमोऽर्हत.” कहकर श्रीसिद्धाचलजी का तीस गाथा स्तवन कहे।
. सिद्धगिरि स्तवन गाथा ३० मंगल कमला कंद ए, सुखसागर पूनम चन्द ए। जगगुरु अजिय जिणंद ए, शांतीसर नयणानन्द ए॥१॥ बिहुं जिनवर प्रणमेव ए, बिहुं गुण गाइस संखेव ए । पुण्य भंडार भरेसुए, मानव भव सफल करेसु ए ॥२॥
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प्रधानपत्र
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SANTACTORAAS