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विधि-विभाग
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श्रोनेन्द्रिय धारणा मतिज्ञानाय नमः । २८ मनोधारणा मतिज्ञानाय नमः ।। २९ अक्षर श्रुत ज्ञानाय नमः । ३० अनक्षर श्रुत ज्ञानाय नमः । ३१ संज्ञी श्रुत ज्ञानाय नमः । ३२ असंज्ञी श्रुत ज्ञानाय नमः । ३३ सम्यक् श्रुत ज्ञानाय नमः । ३४ असम्यक् श्रुत ज्ञानाय नमः । ३५ सादि श्रुत ज्ञानाय नमः । ३६ अनादि श्रुत ज्ञानाय नमः । ३७ सपर्यवसति श्रुत ज्ञानाय नमः । ३८ अपर्यवसति श्रुत ज्ञानाय नमः । ३९ गमिक श्रुत ज्ञानाय नमः । ४० अगमिक श्रुत ज्ञानाय नमः। ४१ अंगप्रविष्ट श्रुत ज्ञानाय नमः। ४२अनंग प्रविष्ट श्रुतज्ञानाय नमः। ४३ अणुगामि अवधि ज्ञानाय नमः। ४४ अणुणगामि अवधि ज्ञानाय नमः । ४५ वढमान अवधि ज्ञानाय नमः । ४६ हीयमान अवधि ज्ञानाय नमः । ४७ प्रतिपाती अवधि ज्ञानाय नमः । ४८ अप्रतिपाती अवधि ज्ञानाय नमः । ४९ ऋजुमति मनः पर्यव ज्ञानाय नमः । ५० विपुलमति मनः पर्यव ज्ञानाय नमः । ५१ लोकालोक प्रकाशक श्री केवल ज्ञानाय नमः५ ।
ज्ञान पद चैत्यवन्दन क्षिप्रादिक रस राम चन्हि, तिम आदम णाण । भाव मिलाप से जिन जनित, सुय बीस प्रमाण ॥१॥ भव गुण पज्जव ओहि दोय, जगलोचन णाण । लोकालोक स्वरूप जाण, इक केवल भाण ॥२॥णाणा वरणी नास थिये, चेतन गाण प्रकाश । सप्तम पद में हीर धर्म, नित चाहत अवकाश ॥३॥
ज्ञान पद स्तवन म्हारे अति उछरंगे (ए चाल ) जिनवर भापित आगम भणिया तत्त्व यथा स्थिति गमियाजी ॥ ( म्हारे जगजन तारू) ते उत्तम वर णाण
कहावे. भविजन अह निशि चाहें जी (म्हारे जगजन तारू ) ॥१॥ भक्षा ३ भक्ष कुपंथ सुपंथा । पेयापेय अग्रन्या जी (म्हारे जगजन तारू ) देव . . -मतिमान के २८ मेद होने है। २-श्रुतनानक १४॥ ३-अवधिमानक अमरन्याने
मैदयहां मुख्य छ भेद दिये गये है, मनपर्यव के २ मेट हैं। ४-- पेयलमान का भेद है। 3 मदगो मिलाने से ५१ मंद होते हैं।
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