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जैन-नसार
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६५ आत्मा स्वकृत कर्मणां तस्य फलं स्वयं भोक्ता निश्चये नास्तीति श्रद्धा रूप दर्शन गुणाय नमः। ६६ मोक्षपदं अचलमनन्त सुखनिवासं आधि व्याधि रहित परम सुखमस्तिति श्रद्धा रूप दर्शन गुणाय नमः । ६७ मोक्षपदंसम्यग्ज्ञान दर्शन चारित्रैरेव लभ्यते नान्योपायैरिति श्रद्धा रूप दर्शन गुणाय नमः।
दशम पद १ तीर्थङ्कर अनाशातनारूप विनयगुण सम्पन्नाय नमः । २ तीर्थङ्कर भक्ति प्रवणरूप विनयगुण सम्पन्नाय नमः । ३ तीर्थङ्कर बहुमान करणरूप विनयगुण सम्पन्नाय नमः । ४ तीर्थङ्कर श्रुतरूप विनयगुणसम्पन्नाय नमः । ५ सिद्ध अनाशातना रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । ६ सिद्ध भक्तिः निपुण रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । ७ सिद्ध बहुमान करण रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । ८ सिद्ध स्तुति करण तत्पर रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । ९ सुविहित चन्द्रादि कूलानाशातना रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । १० सुविहित चन्द्रादि कूल बहु भक्ति प्रहवण रूप विनय । गुण सम्पन्नाय नमः । ११ सुविहित कूल बहुमान करण. निपुण रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । १२ सुविहित कूल संस्तुति करण तत्पर रूप गुण सम्पन्नाय नमः । १३ कौटिकादि सुविहित गण भक्ति बहुमान रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । १४ कौटिकादि सुविहित गण भक्ति करण निपुण रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । १५ सुविहित कौटिकादि गण संस्तुति करण रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः। १६ सुविहित गणानाशातना रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । १७ श्रीसंघ अनाशातना रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः। १८ श्रीसंघ भक्ति करण रूप विनय गुण
सम्पन्नाय नमः । १९ श्रीसंघ बहुमान करण रूप विनय गुण सम्पन्नाय । के नमः । २० श्रीसंघ स्तुति करण रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । २१ श्री
आगमोक्त क्रिया अनाशातना रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः । २२ । शुद्धागम क्रिया बहुमान करण रूप विनय गुण सम्पन्नाय नमः ।
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लगनश्रम