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......... जैन-रत्नसार १० गुरुओंके साथ थंडिल (शौच स्थानमें) जाना और उनसे आगे आना।
११ गुरुजी के साथ बाहर से आये हुए शिष्य गुरुजी से पहले मार्ग है के दोषोंकी आलोचना करे।
१२ रात्रि में गुरुजी पूछे और बुलावें कि कौन सोया और कौन जागता है और आप जागते हो तदपि "मैं जागता हूँ" ऐसा न कहना।
१३ उपाश्रय में श्रावक आवें, उनसे गुरुजी या अपनेसे बड़े पद वालों के बुलाने से पूर्व बातचीत प्रारम्भ करे। ( इसमें गुरुजी और उच्चपद धारियों की आशातना होती है)।
१४ आहार लाकर अपने गुरुजी को आहार बिना दिखलाये ही दूसरे साधुओं को दिखलाना ।
१५ आहारादिका निमन्त्रण गुरुजीको न करके दूसरोंको पहले करना। १६ गुरुजीके बिना पूछे दुसरे साधुओंको आहारका निमन्त्रण देना । १७ गुरुओं को बिना पूछे दूसरों को आहार देना । १८ सरस और स्वादिष्ट आहार स्वयं खाना, गुरुओं को न देना। १९ गुरुओं के वचन सुनकर उत्तर न देना ।
२० गुरुओं के सम्मुख कोई माननीय पुरुष बातचीत करते हुए बुलावें तो भी कठोर वचनसे उत्तर देना या उनकी अवज्ञा करना ।
२१ गुरुओं ने अपने पास बुलाया हो तो भी आसन पर बैठे ही बैठे उत्तर देना, पास में नहीं आना।
२२ गुरुओं ने पूछा हो तो भी बैठे ही बैठे, क्या आज्ञा है, इस / प्रकार बोलना।
२३ गुरु अथवा बड़ोंके साथ असभ्यतापूर्ण वचनों से पुकारना । २४ गुरु बोलें उसी प्रकार अविनय से उत्तर देना ।
२५ जब गुरु किसी साधु साध्वी अथवा रोगी की सार सम्भाल के लिये आज्ञा देवं तव गुरुजी को कहे कि आप ही सार सम्भाल कीजिये. ऐसे कटु वचन बोल कर अवज्ञा करना ।
प्रवचन ARRAYATIMATETami
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