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जैन-रत्नसार
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यप्रणयप्रणमननयन्त्र नयनननननन
तथा आसन बिछा कर बैठना । ३७ चक्की से दाल दलना । ३८ पापड़ आदि सुखाना । ३९ बड़े आदि बनाना तथा हरे साग वगैरह सुखाना । ४० राजा, भाई, लेनदार के भय से दौड़कर मूल गम्भारे में छिप जाना । ४१ पुत्र स्त्री आदि परिवार में से किसी के मर जाने पर शोक करना । ४२ स्त्री कथा, देश कथा, राज्य कथा, भोजन कथा ये चार विकथा करना । ४३ गन्ने (पौण्डे ) को कतरना तथा शस्त्र बनाना या बनवाना । ४४ सर्दी को दूर करने के लिये अग्नि तापना । ४५ धान आदि पकाना । ४६ रुपये रखना । ४७ जेवर रखना। ४८ विधि से णिस्सीहि नहीं कहना । ४९ छतरी, छड़ी(लकड़ी,बेत) तलवार आदि अस्त्र शस्त्र अन्दर ले जाना । ५० जूता, मोजे (जुर्राव) पहने हुए अन्दर जाना । ५१ राजा पर डुलानेके चमर अन्दर ले जाना । ५२ मन को एकाग्र चित्त में नहीं रखना। ५३ हाथ-पैर दबाना तथा दबवाना । ५४ पुष्पोंकी मालाको पहने हुए अन्दर जाना । ५५ हार मुद्रा, कुण्डल पहने हुए अन्दर जाना । ५६ भगवान के सम्मुख जाने पर दर्शन वन्दन नहीं करना । ५७ एक साड़ी का उत्तरासन न करना । ५८ मुकुट पहने हुए भगवान् के सम्मुख जाना । ५९ विवाह शादी में तुर्राआदि पहने हुए अन्दर जाना । ६० फूलों के सेहरा शिर पर रखना । ६१ नारियल आदि फलों का छिलका गिराना । ६२ गेंद खेलना । ६३ पिता या सम्बन्धियों से नमस्कार करना । ६४ हंसी दिल्लगी करना । ६५ खोटे वचन कहना । ६६ धन पदार्थों को लेने के लिये हठ करना। ६७ युद्ध, (लड़ाई) करना । ६८ गीले बालों को सुखाना। ६९ पद्मासनसे बैठना। ७० खड़ाऊ
आदि पहनना । ७१ पैर पसारना । ७२ सुख के वास्ते सिगरेट, बीड़ी, * तम्बाकू खाना तथा पीना। ६३ शरीर को धोकर गन्दा उठाना। ७४ पैर।
की धूली झाड़ना । ७५ मैथुन काम क्रीड़ा करना। ७६ मस्तक या कपड़ोंमें से जूये निकालकर जमीनपर गिराना । ७७ भोजन जीमना। ७८ स्त्री पुरुषों
गादीके मान के लिये श्रीपूज्य जी महाराज आसन बिछाते है उसपर वे स्वयं नहीं घेठ सकते बल्कि ओघा रख सकते हैं। गुजरात देश के रहने वाले साधु लोग मन्दिरों में आसन : विछा कर बैठते हैं। यह प्रथा शास्त्र से विपरीत तथा उपरोक्त आशातना की सूचक है। धागा
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