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जैन-रत्नसार इच्छामि ठामि तस्स उत्तरी• अणत्थ०' कह कर बीस लोगस्स या अस्सी णमोक्कारका काउसग्ग करे। पार कर प्रगट लोगस्स. कहे । तत्पश्चात् बैठ करचउमासी समाप्त मुंहपत्तिका पडिलेहण कर दो वन्दना देवे और 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् !' समाप्ति खामणेणं अब्भुटिओमि अभितर चउमासियं । खामेउं ? कहे । गुरु के खामेह कहने पर 'इच्छं खामेमि चउमासियं । किंचि०' कहे। फिर इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चउमासिय खामणा खामं ? कहे। गुरु के 'पुण्यवन्तोः ' कहने पर एक एक खमासमण तथा तीन तीन णमोक्कार चार बार बोलकर 'चउमासी समाप्ति खामणा खामेह कहे । पीछे गुरु के 'पुण्यवन्तो० ! चउमासियके निमित्त दो उपवास, चार, आयंबिल, छ णिब्धि, आठ एकासणे, चार हजार सज्झाय करके चउमासिय की पेठ पूरना तथा चउमासिय के स्थानपर देवसिय कहना सब ‘तहत्ति' । कहें। पीछे दो वन्दना देकर सदैव की भांति देवसिक प्रतिक्रमण
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करे।
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विशेषता इतनी है कि श्रुतदेवता का काउसग्ग करके 'कमलदल विपुल नयना०१' आदि श्रुतदेवी की थुइ कहे। फिर 'भुवणदेवयाए करेमि | काउसग्गं, अणत्थः' कह कर एक णमोक्कारका काउसग्ग 'नमोऽर्हत०' कह
पार कर 'ज्ञानादिगुणयुतानां.' इत्यादि भुवन देवता की थुई कहे । बाद में क्षेत्र देवता का काउसग्ग पार कर 'यस्याः क्षेत्रं समाश्रियः' थुई कहे नमोस्तु वर्धमानाय णमोत्थुणं. कह और 'अजित शांति' बोलना । लघु स्तवन के स्थान में 'उवसग्गहरं०*' कहे । प्रतिक्रमण पूर्ण होने पर गुरु से आज्ञा लेकर 'नमोऽर्हत०' पढ़ के एक श्रावक बृहत् शांति बोले और शेष । सब सुनें। फिर पूर्वोक्त रीति से सामायिकर पार कर अन्तमें दादाजी का स्तवन बोले ।
साम्वत्सरिक प्रतिक्रमण की विधि प्रथम पूर्ववत् सामायिकर लेवे तथा जयतिहुअणः सम्पूर्ण और १- पृष्ठ २२ । २–पृष्ठ ८४।३-पृष्ठ ८६। ४-पृष्ठ १८ ।
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चउमासी। *श्री सेढी के चैत्यवन्दन में। ननननननननननननननननननननननननननननननन्द्रायणन्यवनप्राश्रयग्रता