________________
wrrrrrroreel
EC ในปัจในไอใกไกโกใจใดใด
जैन-रत्नसार आलोचना करती हुई एवं गुरु चरणों में भक्ति रखती हुई मृगावती साध्वी को आवरण रहित पांचवां ज्ञान (केवलज्ञान) उत्पन्न हुआ। इसलिये विनय धर्म में ही सर्वगुणों का समावेश हो जाता है ॥३३॥
देसावगासिक पच्चक्वाण अहंणं भंते ! तुम्हाणं समीवे देसावगासियं पञ्चक्खामि । दवओ, खित्तओ, कालओ, भावओ। दव्यओ णं देसावगासियं, खित्तओणं इत्य,
वा अणत्य वा कालोणं जाव धारणा भावओणं जाव गहणं न । गहेन्जामि, छलेणं ण छलेज्जामि, अण्णेण केणवि रोगायकेण वा एस में . परिणामो ण परिवडइ ताव अभिग्गहो, अण्णत्यणाभागेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व समाहि वत्तियागारेणं वोसिरइ ।
देसावगासिक पारण गाथा जेमे जाणं तिजिणा अबराहा जेसु जेसु ठाणेसु ।
ते सन्चे आलोएमि अभुडिओ संघ भावेण ॥१॥ मैंने देसावगासिक विधि से लिया, विधि से पूर्ण किया, विधि में किसी प्रकार की अविधि हुई हो तो मिच्छामि दुक्कडं ।
॥ इति सूत्रविभागः॥
ใจให้ไดไไไไฉไลไกใดใกใกไดไไดไกในใดใดใดในใจให้ไกใดในโลกไกะไดได้ใจ
Eudr tale Thaliliate lintasterlastushalirticlnatantainitalistarlalethalalitAHATETamanthalamASERTAsleshalilakshaastalianchistialaalnilnaliratkinnealo inlamlanata lmalentilamle-litatistraliatmeatmlsalilionlinentalmishtactrelidinamainaleliatnaale luntaratmaster
ไขคไดไไไดไม่พบไอนไลไอดไปที่ไหนไดไไดไละงปไกลไม่ได้ไปไกลไกได้ไงไจโกงไพรใกลไกใดปีกในไปกติใดใดใดใดใดไกลไกในสไไดไไกไกได้ไหนไม้ใคใดได้ไง
* देसावगासिय जघन्य से तीन सामायिक की होती है और उत्कृष्ट से १५ सामायिक * की होती है। दशम देसावगासिक व्रत का पञ्चक्खाण करनेवालों को सामायिक अवश्य र लेनी चाहिये।