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________________ ८२ जैनराजतरंगिणी राजा : मुसलिम राजनीतिशास्त्र देवाधिराज एवं धर्म निगडित राज्य में विश्वास करता है। राज्य एवं धर्म में अन्तर नहीं मानता। दोनों को एक तुला के दो पलडे समझता है। मुसलिम राजशास्त्र धर्म निरपेक्ष राज्य सिद्धान्त स्वीकार नही करता । कुछ सुल्तान एवं बादशाह हुए है। उन्होंने राज्य को धर्म से अलग रखने का प्रयास किया | भारत में अलाउद्दीन खिलजी ने इस दिशा मे चलने का सर्वप्रथम प्रयास किया था। शेरशाह सूरी विद्वान् के साथ ही साथ व्यावहारिक व्यक्ति था । उसने भी लौकिक राज्य के आधार पर कार्य करने का प्रयास किया था । अकबर ने लौकिक राज्य के आधार पर राज्य का ढाँचा खड़ा किया था । किन्तु यह सब सुल्तान मुसलिम सुल्तानों की लम्बी परम्परा में अपवाद मात्र है । काश्मीर में प्रारम्भ के कुछ सुल्तान लौकिक राज्य सिद्धान्त का अनुसरण किये थे । उस समय काश्मीर की जनता हिन्दू बहुल थी । सिकन्दर बुतशिकन तथा अलीशाह के समय काश्मीर का मुसलिमीकरण हो गया । अतएव हिन्दुओ पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध जजिया, आदि लगाये गये थे । सिकन्दर के पुत्र एवं अलीशाह का कनिष्ठ भ्राता जैनुल आबदीन के समय घारा वदली । लौकिक राज्य की झलक दिखाई पड़ने लगी । जनता की रुचि रचनात्मक कार्य एव ज्ञानार्जन करने की ओर हुई । जोनराज ने जैनुल आबदीन को अवतार माना था । ( जौन: ९७३ ) श्रीवर जोनराज की शिष्य था । वह भी जैनुल आबदीन को देव का अंश मानता था - 'जहाँ पर कामदेव शिवांश राजा को जीतने के लिये, राजसभा के ब्याज से अपना बहुत रूप बनाकर, भावासक्त हो गया था ।' (१ : ४ : ५ ) श्रीवर सुल्तान को शिवांश मानता था । आगे चलकर सुल्तान ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव का अंश मान लिया । 'गिरती हुई जलधारा के शब्द ब्याज से, ब्रह्मा, अच्युतेग एवं शिव के अंशभूत राजा से कुशल प्रश्न किये । ( ९:५:९७) वास्तव में विष्णु अवतार उस राजा ने अपने पद पराक्रम को जानने के लिए भक्तिपूर्वक तीन बार प्रदिक्षणा की ।' जहाँ पर भी कहीं उपमा देने का अवसर मिला है, आबदीन की तुलना की है । बह जैनुल आबदीन को मानता था । ( १:६:११ ) इसी प्रकार श्रीवर ने (१:७:१३५) जैनुल आबदीन को उसने राम तुल्य (१:१:१९, २२) श्रीवर ने दैवी शक्तिधारी पुरुषों से जैनुल युधिष्ठिर के समान धर्मात्मा, सत्यवादी एवं न्यायी जैनुल आबदीन की तुलना रघुनन्दन से की है । राजा तथा धर्मराज सदृश न्यायी चित्रित किया है । अन्य सुल्तान हैदर शाह, हसन शाह एवं मुहम्मद शाह को देवांश अथवा अवतार नहीं मानता । मुसलमानों द्वारा मानते इस मान्यता को श्रीवर दुहराता है कि काश्मीर का सुल्तान शिवांशज है । उस पर पराक्रम से नही तपस्या से विजय प्राप्त की जा सकती है । ( ४:३३१-३३४) कल्हण का आदर्श राजा अशोक, कनिष्क, मेघवाहन है, दिग्विजयी राजा ललितादित्य एवं जयापीड है । जोनराज का आदर्श राजा शिहाबुद्दीन तथा जैनुल आबदीन हैं । श्रीवर का आदर्श राजा जैनुल आबदीन है । कला, संगीत, नृत्य, गान की दृष्टि से उसने हसन शाह को आदर्श राजा माना है । किन्तु श्रीवर राजा पर अति विश्वास का विरोधी है, वह लिखता है - 'विभव के कारण प्रसिद्ध, प्रभावशाली, राजा का प्रिय पात्र हूँ, आत्मनिष्ठ इस मान को त्याग दो, गन्धर्व नगर, कुसुम्भ राग, वेश्या रस, नृपति की स्थिरता की आशा कहाँ से हो सकती है ?' (३:४०८ ) * राजा का कर्तव्य : भाग्यवादी होते हुए भी, श्रीवर राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन स्थान-स्थान पर किया है। राजा को गुणी,
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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