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________________ ८१ भूमिका वितत्सा में नाव पर अवन्तिपुर और वहाँ से विजयेश्वर गया । (१:४:४) विजयेश्वर में उसने उत्सव में भाग लिया । वहाँ नाटक, संगीत, नृत्य, गान होता था । (१ ४:५-११) हैदर शाह के समय मे श्रीवर पुष्पलीला का उल्लेख करता है । हैदर शाह भी मडव राज्य पुष्प लीला के लिये गया था। (२:११४) सुल्तान हसन शाह के पुष्प लीला का उल्लेख श्रीवर करता है-'राजा सैयिद सहित, कुसुम क्रीड़ा करने के लिये, भवनोपम मे उसी प्रकार गया, जिस प्रकार इन्द्र चैत्ररथ मे । पुष्प लीला करके, नौका से आकर, महीपति ने मार्गेश नौरुज के साथ पान लीला की ।' (३:३६५,३६६) सुल्तान मुहम्मद शाह शिशु था। गृह युद्ध आरम्भ था। अतएव पुष्प लीला का उल्लेख स्वल्प दो वर्षों के राज्यकाल मे श्रीवर ने नहीं किया है। पुष्प लीला के सन्दर्भ में विस्तार के साथ यथा स्थान वर्णन किया गया है। श्रीवर ने पुष्प लीला नामक चतुर्थ सर्ग, तरंग प्रथम मे लिखा है। इससे प्रकट होता है। पुष्प लीला का महत्त्व काश्मीरी जीवन मे था। तोप-बारूद : आतिशबाजी: जैनुल आबदीन के समय बारूद का प्रवेश काश्मीर में हुआ था । विदेशी शिल्पियों द्वारा बारूद बनाने की कला आयी । आतिशबाजी का रोचक वर्णन श्रीवर करता है-'अंगार क्षार, सोरा, चूर्ण आदि गन्धक औषध युक्त रागो से शिल्पियों द्वारा की गयी लीला ने दर्शकों का मनोरंजन किया। औषध पूर्ण नाल से निकलते, घने अग्निकण कुसुम से पूर्णलता का भ्रम उत्पन्न कर रहे थे। सलिलान्तर से निर्गत सर्पाकार अग्नि ज्वाला प्रेक्षक लोगों मे वास, आश्चर्य एवं भय का उदय कर रही थी।' (१:४:१९-२१) उत्सव, शादी आदि के अवसर पर चीं, बाण, फुहारा, गुब्बाड़ा, अनार, चादर आदि आतिशबाजियां छोड़ी जाती है। श्रीवर के समय इसका प्रवेश काश्मीर में हुआ था । अतएव उसने साहित्यिक वर्णन किया है । (१:४:२१-२९) गोली, गोला का भी इसी प्रकार श्रीवर वर्णन करता है-'शिल्पियों ने वज्र के विविध प्रकार प्रदर्शित किये। जिसमे वीरजनों के कम्पित करने वाली ध्वनि सुनी गयी । (१:१:७२) शिल्पियों द्वारा निर्मित तत् तत् धातु मय नवीन यन्त्र भाण्ड प्रकारों को सुल्तान ले आया।' (१:१:७३) श्रीवर तोप निर्माण का समय भी देता है-'एकतालीसवें (लौ० ४५४१ = सन् १४६५ ई०) मे इस यन्त्र भाण्ड का निर्माण किया। लोक में मौसुल (मुसलिम) भाषा मे तोप और लोक में काण्ड नाम से प्रसिद्ध हुआ।' (१:१:७७) आकाशीय बिजली को वज्र कहते है। बिजली कड़क द्वारा जितना तीव्र घोष होता है, वैसा ही तोप आदि के छोड़ने से होता था। उसकी तुलना वज्र से कर, उसका नाम ही वज्र रख दिया गया था। नौका युद्ध : समुद्र में ही नाविक युद्ध नहीं करते थे, समुद्र मे ही केवल जहाजी युद्ध नही होता था, काश्मीर में भी नाविक सेना थी। उसका अधिपति नाबिकाधिपति कहा जाता था। सैय्यद-काश्मीरियों के संघर्ष प्रसंग में श्रीवर वर्णन करता है-'देव नामक शाकुनिक ने जो कि नाविकाधिपति था, नौका युद्ध द्वारा उत्तम वीरों का विनाश किया।' (४:१७३)
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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