SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ जैनराजतरंगिणी [२:७५-७७ राज्ञा प्रातः समाहूय विसृष्टानुचरा गृहात् । सर्वे हस्सनकोषेशमुख्यास्तूर्ण समाययुः ॥ ७५ ।। ७५. राजा ने प्रातःकाल उनको लाने के लिये अनुचरों को भेजा और शीघ्र ही गृह से हस्सन कोशेश प्रमुख सब लोग आ गये । कम्पते तुरगस्त्रस्तो ज्ञातवृत्त इवाचलः । ताडनैबहुशः सानुः प्राप कष्टान्नृपाङ्गनम् ।। ७६ ।। ७६. जिस प्रकार वृत्तान्त जानने के कारण अश्व' काँपता, त्रस्त एवं अचल हो जाता है, तथा बहुतः ताड़ित करने से, आँख में आँसू भरकर, बड़े कष्ट से नृप-प्रांगण में पहुंचता है महार्हास्तरणस्थांस्तान् राजकतेव्यताकुलान् । कोपेशहस्सनमेरकाकादीन् पञ्चषान्नृपः ।। ७७ ।। ७७. बहुमूल्य आस्तरण पर स्थित तथा राज कार्य जानने के लिये आकुल उस कोशेश हस्सन, मेर काक' आदि पाँच-छः लोगों को राजा ने पाद-टिप्पणी : उसके पडते टाप, उसके हिनहिनाने, चलते-चलते रुक 'साश्रुः' पाठ-बम्बई। जाने, गतव्य मार्ग से सहसा लौट पड़ने, ठोकर खाने, ७६ (१) अश्व : मेरे पास भी एक घोडा था। आँसू बहने आदि से भविष्य का शकुन निकलता मेरे घर घोड़ा और हाथी रखने की परम्परा चली था। रणस्थल में जाते समय यदि अश्व के आँखों आती थी। हाथी और घोड़ा दोनों जमीन्दारी उन्मू- से आँसू बहता है, ठिठिकता चलता है, हठात् खड़ा लन के पश्चात निकाल दिया। जमीन्दारी निकल जाने हो जाता है, अनायास काँपने लगता है, तो उसका के पश्चात आर्थिक संकट आ गया। अतएव उन्हे फल पराजय, मृत्यु आदि अपशकुन होता। मुसलबेंच दिया। घोड़े का महत्व मोटर कारों के पूर्व था। मानों में कहावत प्रचलित थी कि यदि जिन अर्थात् सन् १९२० ई० तक सामाजिक जीवन में कुलीनता भूत सामने होता है, तो घोड़ा हिनहिनाता है, की निशानी के अतिरिक्त वाहन का मुख्य साधन वह जिनो के मार्ग से कतरा कर निकल जाता है। था। सवारी और एक्का तथा गाड़ी मे जोतनेवाले इस कुसंस्कार के कारण पूर्वकाल में कुलीनवर्गीय घोड़ों को विशेष रूप से आवश्यकतानुरूप शिक्षा दी व्यक्ति दिन तथा मुख्यतः रात्रि में सवारी जिन एवं जाती थी। अरब के सौदागर मेरे बाल्यकाल तक प्रेतबाधा से बचने के लिए करते थे। अंग्रेजी तथा घोड़ा बेचने काशी आते थे। काशीराज की सेना के भारतीय भापा में अश्व विज्ञान, अश्व चिकित्सा साथ अंग्रेजों की सेना भी छाउनी बनारस कैण्ट में आदि ग्रन्थ प्रचुर संख्या में मिलते है । जहाँ मृत्यु थी। व्यापारियों के लिए काशी अच्छा व्यापारिक या आहत होने की शंका अश्वारूढ की होती केन्द्र था। है, वहाँ वह जाने में डरता है। जबर्दस्ती अश्वारोही ___ अश्वों के विषय में नाना प्रकार की किम्बदन्तियाँ उस ओर उसे ले जाता है। श्रीवर इसी का वर्णन उक्त श्लोक में करता है। उन दिनों प्रचलित थीं। श्रीवर के समय वह किम्ब- " दन्ती काश्मीर में भी प्रचलित थी। अश्व अपनी ७७. (१) काक: काश्मीरी ब्राह्मणों की एक मृत्यु जान जाता है। उसकी मुद्रा, उसकी गति, उपजाति है। सारस्वत ब्राह्मण हैं। वर्तमान काल
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy