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जैन राजतरंगिणी
म्लेच्छैर्वृहत्कथासारं
हाटकेश्वर संहिताः ।
पुराणादि च तद्युक्त्या वाच्यते निजभाषया ।। ८६ ।।
८६ उसकी युक्ति से म्लेच्छ लोग वृहद् कथासार' तथा हाटकेश्वर संहिता, पुराणादि को अपनी भाषा में पढ़ते हैं ।
[ १ : ५ : ८६-८७
कश्चिच्छ्रुत्वा शुचिरुचि चिरं धर्मशास्त्र पवित्रं
धत्ते चित्ते पट इव सितो रञ्जनं तत्क्रियां यः । आकर्ण्यान्ये प्रतिदिनममुं पद्मिनीपत्र तुल्याः
कुल्याधारा अपि धृतगुणा गृहृतेऽतन्न किंचित् ॥ ८७ ॥
८७ कुछ लोग सुचि - रुचिपूर्वक चिरकाल पवित्र धर्म-शास्त्र सुनकर, , अपने चित्त पर उसकी क्रिया को उसी प्रकार (धारण) कर लेते हैं, जिस प्रकार श्वेत पट रंग ग्रहण करते है । अन्य लोग इसे सुनकर भी, अपने (अन्दर ) उसी प्रकार कुछ नही ग्रहण करते, जिस प्रकार पद्मिनीपत्र गुण युक्त कुल्याधारा को ।
मीर, (२) जमशेद, (३) अलाउद्दीन, (४) शिहाबुद्दीन, (५) कुतुबुद्दीन, (६) सिकन्दर बुतशिकन (७) अलीशाह, (८) जैनुल आबदीन, (९) अलीशाह, (१०) जैनुल आबदीन ।
संस्कृत में उक्त दश राजाओं का इतिहास लिखा
गया था ।
दशावतार मे - (१) मत्स्य, (२) कच्छप, (३) वाराह, (४) नृसिह, (५) वामन, (६) परशुराम, (७) राम, (८) कृष्ण, (९) बुद्ध और (१०) कल्कि है ।
सुल्तान ने दशावतार तथा राजाओं के ग्रन्थ राजतरंगिणी का अनुवाद पारसी ( फारसी ) भाषा में कराया, ताकि जो लोग संस्कृत नहीं जानते, वे उनका अध्ययन फारसी में कर सके ।
पीर हसन लिखता है - 'खासकर महाभारत और राजतरंगिणी का नुसखा कि दोनों संस्कृत ज़बान में थीं। इनका तरजुमा मुल्ला अहमद ने किया । जयसिंह के अहद से लेकर अपने वक्त तक राजतरंगिणी का जमीया पण्डित जोनराज के जरिया संस्कृत ज़बान में मुरतब कराया ( पृष्ट १७८ ) ।' पीर हसन का वर्णन श्रीवर के अनुकूल नहीं है । जोनराज ने रिचन सहित पन्द्रह हिन्दू राजाओं के
राज्य तथा १० सुल्तानों के चरित का वर्णन किया है। अतएव दश राजा का अर्थ यहाँ सुल्तानों से लगाना ही उचित प्रतीत होता है ।
तवक्काते अकबरी में भी उल्लेख है - 'महाभारत जो कि एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है, राजतरंगिणी जिसमे काश्मीर के बादशाहों का इतिहास है, उसके आदेशानुसार फ़ारसी मे भाषान्तरित हुई ( पृष्ठ : ६५९ ) ।'
स्पष्ट लिखा है - ' तरजुमह करदन्द, व किताब महाभारत ।' दूसरी पाण्डुलिपि में ' मशहूर किताब ' शब्द नही लिखा है । दोनों ही पाण्डुलिपियों मे 'राजतरंगिणी' लिखा है । उसके सम्बन्ध में उल्लेख है - ' किताब को राजतरंगी कहते है जो कि काश्मीर के बादशाहों की तवारीख है ( ६५९ ) ।' पाद-टिप्पणी :
८६. ( १ ) बृहद् कथासार ।
( २ ) हाटकेश्वर : हाटकेश गोदावरी तट स्थित भगवान् शंकर की एक मूर्ति का नाम है। ( स्कन्द ० : नर्मदा - माहात्म्य ) । हाटक उत्तर में एक देश, गुझकों का निवास स्थान है ( सभा० : २८ : ३–४ ) ।