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१५:८४-८५]
श्रीवरकृता
धातुवादरसग्रन्थकल्पशास्त्रोदितान्
गुणान् ।
यवना अपि जानन्ति स्वभापाक्षरवाचनात् ॥ ८४ ॥
८४. धातुबाद', रस ग्रन्थ एवं कल्प शास्त्रों मे उक्त गुणों को अपनी भाषा का अक्षर पढ़ने के कारण यवन भी जानते है ।
दशावतार पृथ्वीशग्रन्थराजतरङ्गिणीः
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संस्कृताः पारसीवाचा वाचनास्त्वकारयत् ।। ८५ ।।
८५. संस्कृत भाषा में लिखी गयी, दश राजाओ' का ग्रन्थ राजतरगिणी को फारसी भाषा द्वारा पढ़ने योग्य कराया ।
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जवान में करवाया। इसी तरह अरबी और फारसी किताबें भी संस्कृत में तरजुमा करवायी ( पृष्ठ १७८) । आइने अकवरी मे उल्लेख है—उसने बहुतसी किताबों का अनुवाद अरबी से फारसी, काश्मीरी, तथा संस्कृत में कराया था। सववकाते अकबरी में भी उल्लेख मिलता है - सुल्तान को फारसी हिन्दी तथा तिब्बती का ज्ञान था उसके आदेशानुसार बहुत-सी अरबी तथा फारसी अन्यों का हिन्दी (हिन्दी) में अनुवाद हुआ (पृष्ठ ६५९) ।
और
श्रीवर ने स्वयं युसुफ - जुलेखा का अनुवाद संस्कृत मे कथाकौतुक नाम से किया था । मुल्ला अहमद ने महाभारत तथा कल्हण की राजतरंगिणी का अनुवाद फारसी में किया था (म्युनिस : पाण्डु० : ७३ ए० ) ।
केम्ब्रिज हिस्ट्री मे उल्लेख है — सुल्तान ने महाभारत, राजतरंगिणी का संस्कृत से फारसी मे तथा फारसी और अरवी के अनेक ग्रन्थों का अनुवाद हिन्दी भाषा मे कराया। उसने फारसी भाषा को राज्य भाषा बनाया, जो अदालतों तथा सरकारी मुहकमों में प्रचलित की गयी (३ : २८२) । पाद-टिप्पणी :
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८४. (१) धातुवाद: खनिज विज्ञान या धातु विज्ञान | वैद्यक के अनुसार, रस, रक्त, मांस, मेद, मज्जा एवं शुक्र सप्त धातुऐ मानी गयी है। बौद्धों
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ने १८ धातुएँ मानी है। पंचभूतो तथा पंचतन्मात्रा को भी धातु मानते है। बौद्धों के अनुसार क्षु प्राण ओत्र, जिल्हा, काय, रूप, शब्द, गंध, रस, स्थानव्य, चक्षुविज्ञान, श्रौत्र विज्ञान, घ्राण विज्ञान, जिल्ला विज्ञान काय विज्ञान, मनो धर्म तथा मनोविज्ञान धातु है। चौसठ कलाओं में एक है । (२) रसग्रन्थ : रससिद्धि विज्ञान ।
(३) कल्प शास्त्र कल्पसूत्र सृष्टि के उत्पत्ति, स्थित एवं समाप्ति किंवा तप सम्बन्धी ज्ञान, षड् वेदागों मे एक - वैदिक सूत्र ग्रन्थ । इसमे यज्ञादि करने का विधान है यज्ञानुष्ठान एवं धार्मिक संस्कारों के नियमों का संग्रह है। श्रोत, गृहसूत्र आदि ग्रन्थ इसी के अन्तर्गत है । शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष बेदाग है । वेदाग शब्द सर्वप्रथम निरुक्त (१. २०) तत्पश्चात ऋग्वेद प्रतिशाख्य (१२ : ४० ) मे ऋग्वेद के सहायक ग्रन्थों को प्रकट करता है ।
फारसी लिपि में लिखो गयी
(४) भाषा पुस्तक | पाद-टिप्पणी :
श्लोक का अर्थ यह भी हो सकता है-संस्कृत भाषा में रचित दशावतार एवं राजाओं का ग्रन्थ राजतरगिणी को फारसी भाषा द्वारा पढ़ने योग्य कराया ।
८५. (२) दश राजा राजा श्रीवर के इस समय
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शाहमीर वंश के दश तक हुये थे । ( १ ) शाह -