________________
१ : १ : ११२ - ११६ ]
राज्येऽपि हि महत् कष्टं सन्धिविग्रहचिन्तया । पुत्रादपि भयं यत्र तत्र सौख्यस्य का कथा ॥ ११२. 'राज्य में भी सन्धि विग्रह की चिन्ता से महान कष्ट है, प्राप्त है । वहाँ सुख की क्या चर्चा ?
अधर्मशङ्का दूरेऽस्तु वैधेयातिविधेये
श्रीवरकृता
युद्धे जनकपीडया |
स्नेहोऽपि विस्मृतः ॥ ११३ ॥
४१
११२ ॥
जहाँ पर पुत्र से भी भय
११३. 'युद्धजनक पीड़ा से अधर्म की शंका दूर रहे। मूर्खतापूर्ण कार्य करने वाले, जिसने स्नेह भी विस्मृत कर दिया-
त्वयि कुर्वति साम्राज्यं यः खेदाय समागतः ।
स यातु सवलः शीघ्रं त्वद्वीर्याग्निपतङ्गताम् ॥ ११४ ॥
११४. 'तुम्हारे साम्राज्य करते हुए जो दुःख देने के लिये आ गया, सेना सहित वह शीघ्र तुम्हारे पराक्रमाग्नि में फर्तिगा बने ।
Raharai राज्यं क्रिया धर्मक्रिया भजन् ।
वैरिणो विमुखा यान्तु रणे लब्धपराभवाः ॥ ११५ ॥
११५. 'तुम्हीं अकंटक राज्य एवं धर्म कृया करो और रण में पराभव प्राप्त बैरी विमुख हो जाय ।'
पाद-टिप्पणी :
११२. ( १ ) सन्धि कौटिल्य ने ६ गुणों का उल्लेख किया है - सन्धि, विग्रह, आसन, मान, संश्रय एव द्वैधीभाव । कामन्दक ( ९ : २–१८ ) एवं अग्निपुराण ने सन्धि के सोलह प्रकार बताये है । कामन्दक का आधार कौटिल्य है ( कौटिल्य : ७ : ३ ) । सेना तथा युद्ध के विषय में सन्धियों के सम्बन्ध में विशद साहित्य है । स्थानाभाव से यहाँ देना कठिन है । विष्णुधर्मोत्तरपुराण (२ : २४. १७) के अनुसार सन्धि विग्रहिक शान्ति एवं युद्ध सम्बन्धी मन्त्री था । एक अधिकारी था, जो राजजै. रा. ६
ग्रामेष्वित्यधिकास्तास्ताः शृण्वञ्जनपदाशिषः ।
प्रापत् सकटको राजा स सुप्रशमनाभिधम् ।। ११६ ।।
११६. इस प्रकार गावों में अधिक से अधिक निवासियों का आशीर्वाद सुनते हुए, सेना सहित वह राजा सुशमन' (स्थान) पर पहुँचा ।
कीय अनुदान देता है । समुद्रगुप्त के प्रशस्ति में इस शब्द का उल्लेख मिलता है ( गुप्त : इन्शक्रिप्सन संख्या १ : पृष्ठ ५ ) ।
( २ ) विग्रह: कामन्दक (१० : २-५) तथा अग्निपुराण ( २४० : २०-२४ ) में सोलह विधियों का वर्णन किया गया है जिससे विग्रह होता है यथा-- राज्य पर अधिकार, स्त्री, जनपद, वाहन, धन छीन लेना, गर्व, उत्पीड़न आदि । पाद-टिप्पणी :
११६. (१) सुप्रशमन : सुपियान जिला में एक परगना है । मराज खण्ड में हैं । रामबयार नदी के वाम तट पर, पर्वत पादमूल में है ।